Book Title: Shiksha evam Samajik parivartan Author(s): Bhavani Shankar Garg Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 5
________________ शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन 5 अर्थशास्त्र एवं स्कूल व्यक्ति की शिक्षा पर जो भी खर्च किया जाता है वह आर्थिक इनवेस्टमेन्ट है। शिक्षित होकर व्यक्ति न केवल अपनी आर्थिक स्थिति सुधारता है वरन् देश के आर्थिक विकास में भी बहुत बड़ा योगदान देता है। इंजीनियर, डॉक्टर, तकनीकी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, साहित्यकार आदि इस विकास में सम्पूर्ण रूप से भागीदार हैं / अत: शिक्षा पर किया गया खर्च फिजूलखर्च न मानकर भविष्य के लिये उपयोगी माना जाना चाहिए। शिक्षण संस्थाओं में शिक्षित होकर ही परिवर्तन में क्रान्तिकारी योगदान मिलता है। धर्म एवं शिक्षा प्राचीन काल में भारत में शिक्षा का आधार आध्यात्मिक ही था / आज भी इन संस्थाओं का समाज में पूर्ण प्रभाव है। भारत जैसे विभिन्नताओं वाले देश में धर्म निरपेक्षता समाज का आधारभूत बिन्दु है लेकिन विभिन्न आध्यात्मिक मान्यताओं का मौलिक चिन्तन, नैतिक विश्वास के लिये आवश्यक है। यही कारण है कि विभिन्न धार्मिक संस्थाएँ समाजीकरण के लिये आज भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं / लेकिन उनका दृष्टिकोण साम्प्रदायिकता के प्रसार के लिये नहीं वरन् देश में साम्प्रदायिक एकता एवं धर्म निरपेक्षता में योगदान के लिये होना चाहिये। शिक्षण संस्थाएं इसके लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। __समुदाय एवं स्कूल जैसा कि पहले बताया जा चुका है समुदाय एवं शिक्षा का सम्बन्ध गहरा है। भारतीय समाज के सन्दर्भ में यह और भी महत्त्वपूर्ण है। स्थान विशेष की आवश्यकताओं, सामाजिक मान्यताओं, भौगोलिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक यही कारण है स्कूल-कम-कम्युनिटी सेन्टर की कल्पना से शिक्षा में कार्य करने की प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ रही है। अनौपचारिक एवं औपचारिक शिक्षा का समन्वय इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। समुदाय के बौद्धिक विकास की कार्यवाही शिक्षा के साथ-साथ यदि नहीं की गई तो यह शिक्षा असफल हो जायेगी तथा समाज उसकी उपेक्षा करेगा। समुदाय को शिक्षण संस्थाओं के आर्थिक विकास में आवश्यक मदद देनी चाहिये। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन के लिये न केवल महत्त्वपूर्ण परन्तु आवश्यक आधार है। शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन जब से सृष्टि की रचना हुई है तब से एक दूसरे के पूरक रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों तक भी रहेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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