Book Title: Shiksha evam Samajik parivartan Author(s): Bhavani Shankar Garg Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 1
________________ -. -. - . - . - . - . - . - . - . - . -. -. -. -. शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन - श्री भवानीशंकर गर्ग (आचार्य, जनता कालेज, डबोक, एवं कुलप्रमुख, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर) सुष्टि की रचना के साथ ही समाज के क्रमिक विकास में मानव का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। व्यक्ति के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती और न ही समाज के बिना व्यक्ति का विकास ही संभव है। आदि-मानव से लेकर आज तक के आधुनिक समाज का विकास विभिन्न क्षेत्रों, प्रान्तों एवं राष्ट्रों में विभिन्न कारणों, भौगोलिक तथा अन्य देशकाल और परिस्थितियों के कारण अलग-अलग संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के विकास के रूप में हुआ है। संस्कृति यदि समाज की आत्मा है तो सभ्यता उसका व्यावहारिक आचरण है। मानव की जिज्ञासा, निरन्तर सीखने की प्रवृत्ति तथा अनवरत प्रयोगों के कारण आज विश्व विज्ञान, कला, साहित्य, सामाजिक जीवन, तकनीकी ज्ञान तथा रहने-सहने के उच्चतम शिखर पर पहुँच गया है तथा और आगे बढ़ने के अनवरत प्रयत्न चल रहे हैं। इन निरन्तर होने वाले परिवर्तनों के कारण आज का मानव आदिमानव से बिल्कुल भिन्न है। परिवर्तन के इस क्रम में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। विश्व की अनेक संस्कृतियों एवं सभ्यताओं में भारतीय संस्कृति प्राचीनतम मानी गई है। भारत जैसे विशाल देश में जहाँ खान-पान, रहन-सहन, बोल-चाल, रीति-रिवाज आदि क्षेत्रीयता के आधार पर बिल्कुल भिन्न है, वहाँ देश की भावात्मक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता आज भी अक्षुण्ण है। इसका मुख्य कारण यहाँ की प्राचीनतम सांस्कृतिक धरोहर, शिक्षण का आध्यात्मिक आधार तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन में लचीलापन है। सामाजिक परिवर्तन के इस क्रम में शिक्षा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। आधुनिक युग में सामाजिक परिवर्तन एवं शिक्षा के परस्पर सम्बन्ध की बहुत चर्चा होती रहती है। भारत जैसे विकासशील देश में तो यह चर्चा और भी अधिक महत्वपूर्ण है । सामाजिक परिवर्तन की प्रवृत्ति एवं विशेषताओं की जानकारी किये बिना शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन की जो चर्चा की जाती है वह प्रायः अत्यन्त अस्पष्ट व छिछली ही रहती है। अत: इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम सामाजिक परिवर्तन की समाजशास्त्रीय व्याख्या करना आवश्यक है। इसके बाद ही उसका एवं शिक्षा का पारस्परिक सम्बन्ध-विश्लेषण किया जा सकता है। सामाजिक परिवर्तन समाजशास्त्री किंगस्ले डेविन के अनुसार सामाजिक परिवर्तन से केवल वे ही परिवर्तन समझे जाते हैं जो कि सामाजिक संघटन अर्थात् समाज के ढांचे एवं कार्य में घटित होते हैं। अन्य समाजशास्त्रियों की परिभाषाओं का सार यह है कि सामाजिक परिवर्तन वह स्थिति है जिसमें समाज द्वारा स्वीकृत सम्बन्धों, प्रक्रियाओं, प्रतिमानों और संस्थाओं का रूप इस प्रकार से परिवर्तित हो जाता है कि उससे पुनः अनुकूलन करने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। प्रत्येक समाजिक परिवर्तन में तीन तत्व अवश्य ही होते हैं-वस्तु, भिन्नता तथा समय । यह स्मरणीय है कि सामाजिक परिवर्तन वास्तव में सांस्कृतिक परिवर्तन का एक भाग ही होता है । क्योंकि सांस्कृतिक परिवर्तन में संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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