Book Title: Shatjivnikay me Tras evam Sthavar ke Vargikaran ki Samasya Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf View full book textPage 2
________________ ग्रन्थों में किस प्रकार का मतभेद रहा हुआ है, इसका स्पद्रीकरण करना ही प्रस्तुत निबन्ध का मुख्य उद्देश्य है। 1. आधारांग आचारांग में पदजीवनिकाय में कौन सा है और कौन स्थावर है ? इसका कोई स्पष्टत वर्गीकरण उल्लेखित नहीं है। उसके प्रथम श्रुत रकन के प्रथम अध्ययन में जिस कम से पदजीवनिकाय का विवरण प्रस्तुत किया गया है. उसे देखकर लगता है कि जहा प्रयकार पानी, अप. अग्नि और वनस्पति इन चार को स्पष्ट रूप से स्थावर के अन्तर्गत वर्गीकृत करता होगा. जबकि बस और तायुकायिक जीवों को वह स्थावर के अन्तर्गत नहीं मानता होगा, क्योकि उसके प्रथम अध्ययन के द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पंचम इन वार उददशको में क्रमशः पृथ्वी, आप. अग्नि और वनस्पति -- इन चार जीवनिकायों की हिंसा का विवरण प्रस्तुत किया गया है। उसके पश्चात् पष्ठ अध्ययन में सकाय की और रातम अध्ययन में वायुकायिक जीवा की हिंसा का उल्लेख किया है। इसका फलितार्थ यही है कि आवाराग के अनुसार वायुकायिक जीव स्थावर न होकर ऋय है। यदि आवारांगकार को वायुकायिक जीवों को स्थावर मानना हाता तो वह उनका उल्लख सकाय के पूर्व करता। इस प्रकार आचागा। में पृथ्वी. अप, अग्नि और वनस्पति में चार स्थावर और वायु तथा ब्रमकाय में दो वम जीव माने गये हैं - -- या अनुमान किया जा सकता है।' यद्यपि आचागंग के प्रथम श्रुतरकन्ध में ही एक गन्तर्म जमा भी है, जिसके आधार पर उसकाय को छोड़कर शेप पाँचों को स्थावर माना जा सकता है क्योकि वहाँ पर पथ्वी, वायु, अप, अग्नि और वनस्पति का उल्लेख करके उसके पश्चात् ब्रम का उल्लेख किया गया है। 2. ऋषिभाषित जहा तक पिभापित का प्रश्न है, उसमें मात्र एक स्थल पर टिजीवनिकाय का उल्लेख है । उस शब्द का उल्लेख मी है, किन्तु षटजीवनिकाय में कौन स है और स्थावर ने एमी चर्चा उसम नहीं है। 3. उत्तराध्ययन आचारांग से जब हम उल्लराध्ययन की ओर आते हैं तो यह पाते है कि उसके 26वें एवं 36वें अध्यायों में पदजीवनिकाय का उल्लेख उपलब्ध होना है। 26वें अध्याय में यद्यपि स्पष्ट स्प से त्रय और स्थावर के वर्गीकरण की चर्चा तो नहीं की गई है, किन्तु उसमें जिस क्रम से पटजीवनिकायों के नामों का निम्पण हुआ है उससे यही फलित होता है कि पृथ्वी, अप (उदक ), अग्नि, वायु और वनस्पति ये पाँच स्थावर है और छठा त्रसकाय ही त्रस है, किन्तु उत्तराध्ययन के 36वें अध्याय की स्थिति इससे भिन्न है, एक तो उसमें सर्वप्रथम षट्जीवनिकाय को त्रस और स्थावर -- ऐसे दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है और दूसरे स्थावर के अन्तर्गत पृथ्वी, अप और वनस्पति को तथा उस के अन्तर्गत अनि, वायु और त्रसजीवनिकाय को रखा गया है। इस प्रकार यद्यपि उत्तराध्ययन के 36वें अध्याय से आचारांग की वायु को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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