Book Title: Shastriya Vichar Charcha Diksha Kalin Kesh Loch Kaha Gayab Ho Gaya
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 5
________________ चार अंगुल छोड़े हुए केशों का अपने हाथों से लोच करता था। अतएव मेघकुमार के दीक्षा-प्रसंग में सम्राट् श्रेणिक ने नाई को बुलाकर कहा है- "देवानुप्रिय ! तु जाओ और पहले सुगन्धित गन्धोदक से अपने हाथ-पैरों को अच्छी तरह साफ करो। अनन्तर चार पुट वाले श्वेतवस्त्र से अपना मुख बाँध कर मेघकुमार के केशों को चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण योग्य कर दो अर्थात् मेघकुमार के बाल चार अंगुल प्रमाण छोड़कर शेष सब काट दो। राजा के उक्त कथनानुसार नाई सारी क्रिया संपादित कर देता है। तदनन्तर जब मेघकुमार श्रमण भगवान् महावीर के चरणों में दीक्षा ग्रहण करता है, तो अपने आप पंचमुष्टि केश-लोच करता है "तए णं से मेहे कुमारे सयमेव पंच मुट्ठियं लोयं करे।।" मेघकुमार के वर्णन के अनुसार ही भगवती में जमालि राजकुमार का वर्णन है। वहाँ पर भी जमालि का पिता इसी प्रकार नाई से चार अंगुल छोड़कर निष्क्रमण योग्य बाल कटवाता है और फिर जमालि दीक्षा लेते समय स्वयं पंचमुष्टि लोच करता है। मेघकुमार के वर्णन में चार पटल के मुखवस्त्र का उल्लेख है, जो नाई बाल बनाते समय मुख पर बाँधता है। और, यहाँ आठ पटल के वस्त्र का उल्लेख है "अट्ठ पडलाए पोत्तीए मुँह बंधाइ" ज्ञाता सूत्र के पञ्चम अध्ययन में शैलक राजा भी इसी प्रकार दीक्षा ग्रहण करता है। क्योंकि वहाँ पर भी उनकी रानी पद्मावती के द्वारा 'अग्रकेशों' के ग्रहण करने का उल्लेख है "पंडमावई देवी अग्गकेसे पडिच्छइ" दीक्षा-कालीन केश-लोच से पहले नाई के द्वारा अग्रकेशों का कर्तन भी कोई अनिवार्य स्थिति नहीं है। तीर्थंकर और नारी जाति की दीक्षाओं के प्रसंग में कहीं भी नाई को बुलाने का उल्लेख नहीं है। ये सब नाई से अग्रकेश नहीं कटवाते हैं, सीधे ही केश-लोच करते हैं। उक्त वर्णन से सिद्ध है कि दीक्षा-काल में केश-लोच तो हर स्थिति में अनिवार्य है, भले ही कोई साधक दीक्षा के पूर्व नाई से अग्रकेश कटवाए या न कटवाए। दीक्षा के समय स्वयं अपने हाथ से लोच करने की परम्परा रही है। शास्त्रीय विचार चर्चाः दीक्षाकालीन केशलोचः कहाँ गायब हो गया? 157 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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