Book Title: Shastra Sandeshmala Part 22
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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जिण-पवयण-बुड्डि-करं, पभावगं णाण-दसण-गुणाणं । रक्खन्तो जिण-दव्वं परित्त:संसारिओ होइ । ॥ २४॥ एवं णाऊण, जे दव्वं वुड्ढि णिति सु-सावया। जरा-मरण-रोगाणं, अंतं काहिति ते पुणो
॥ २५ ॥ देवा-ऽऽइ-दव्व-णासे, दंसण-मोहं च बंधए मूढो । उम्मग्ग-देसगो वा, जिण-मुणि-संघा-ऽऽइ-सत्तु व्व ॥ २६ ।। चेइय-दव्व-विणासे, इसि-घाए, पवयणस्स उड्डाहे । संजई-चउत्थ-भंगे, मूल-ऽग्गी बोहि-लाभस्स ॥२७ ॥ तित्थ-यर-पवयण-सुअं आयरिय-गण-हरं मह-ऽड्डि। आसायंतो बहुसो अणं-ऽत-संसारिओ होइ
॥ २८ ॥ दारिद्द-कुलोप्पत्ति, दरिद्द-भावं च, कुट्ठ-रोगा-ऽऽई। बहु-जण-धिक्कार, तह अ-वण्ण-वायं च, दो-हगं ॥ २९ ।। तण्हा-छुहा-ऽभिभूई, घायण-वाहण-विचुण्णणत्ती य । एआई अ-सुह-फलाई विसीअइ भुंजमाणो सो ॥ ३० ॥ चेइय-दव्वं विभज्ज, करिज्ज कोई अ नरो सय-ट्टाए । समणं वा सोवहिअं विकिज्ज संजय-ऽढाए ॥ ३१ ॥ एआ-रिसम्मि दव्वे समणाणं किं ण कप्पए घेत्तुं ?। चेइय-दव्वेण कयं मुल्लेण व जं सु-विहिआणं ॥३२॥ तेण-पडिच्छा लोए वि गरहिआ, उत्तरे किमंऽग ! पुणो ? । चेइय-जइ-पडिणीए जो गिलइ, सो वि हु तहेव ॥ ३३ ॥ चेइय-दव्वं गिह्नित्तु, भुंजए, जो उ देइ साहूणं । सो आणा-अण-ऽवत्थं पावइ, लितो वि दितो वि ॥ ३४ ॥ एकेण कयम-5-कज्जं, पुणो वि तप्पच्चया कुणइ बीओ। साया-बहुल-परंपर-वुच्छेओ संयम-तवाणं
॥ ३५ ॥
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