Book Title: Shastra Sandeshmala Part 22
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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जो जह-वायं ण कुणइ, मिच्छ-द्दिट्ठी तओ (हु) वि को अण्णो ? । वड्डेइ अ मिच्छत्तं परस्स संकं जणेमाणो संजम-अप्प-पवयण-विराहणा-संभवो विहं णेओ। पवयण-हेला वि, तओ अवणेओ तस्स संसग्गो ||३७ ।। ववहार सुद्धी धम्मस्स मूलं साहूण संगया। ववहारेणं तु सुद्धेणं अत्थ-सुद्धी जओ भवे
॥ ३८ ॥ अत्थेणं चेव सुद्धणं आहारो होइ सुद्धओ। आहारेणं तु सुद्धेणं देह-सुद्धी जओ भवे
॥ ३९ ॥ सुद्धणं चिय देहेणं धम्म-जोगो य जायइ । जं जं कुणइ किच्चं, तु, तं तं से स-फलं भवे ॥ ४० ॥ अण्णहा, अ-फलं होइ, जं जं किच्चं तु सो करे। ववहार-सुद्धि-रहिओ य, धम्मं खिसावए सयं ॥४१॥ धम्म-खिसं कुणंताणं, अप्पणो वा परस्स वा। अ-बोही परमा होइ इइ सुत्ते वि भासिअं
॥ ४२ ॥ जुआरि-वेस-तक्कर-भट्ठा-ऽऽयारा (-55इ) कु-कम्म-कारीणं । पासंडि-णिवाणं, संसग्गं धम्मिओ चयइ
॥४३॥ तम्हा-सव्व-पयत्तेणं- तं तं कुज्जा विअक्खणो। जेण-धम्मस्स खिसं तु, ण करेइ अ-बुहो जणो ॥४४॥ पक्खिय-चाउम्मासिय, आलोयण णियमओ य दायव्वा। गहणं अभिग्गहाण य, पुव्व-गाहिए णिवेएउं ॥ ४५ ॥ एत्थं पुण एस विही, अरिहो, सु-गुरुम्मि, दलइ अ, कमेण, । आ-सेवणा-ऽऽइणा खलु, सम्मं दव्वा-ऽऽइ-सुद्धस्स ॥४६ ॥ संविग्गो उ, अ-माई मइम, कप्प-ट्ठिओ, अणा-ऽऽसंसी। पण्णवणिज्जो, सड्ढो, आणा-ऽऽयत्तो, दुक्कड-तावी ॥ ४७ ॥
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