Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 18
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ अबुधजनविबोधार्थं किलास्योपदेशो जिनसमयविमूढः केवलं यः श्रितोऽमुम् // 6 // आत्मस्वरूपं पररूपमुक्तमनादिमध्यान्तमकर्तृभोक्त। चिदङ्कितं चन्द्रकरावदातं प्रद्योतयन् शुद्धनयश्चकास्ति .. // 7 // तीर्थप्रवृत्त्यर्थमयं फलेग्रहि-स्त्रिकालविद्भिर्व्यवहार उक्तः / . पर(र:) पुनस्तत्त्वविनिश्चयाय नयद्वयात्तं हि जिनेन्द्रदर्शनम् // 8 // ये यावन्तो ध्वस्तबन्धा अभूवन् भेदज्ञानाभ्यास एवात्र बीजम् / नूनं येऽप्यध्वस्तबन्धा भ्रमन्ति तत्राभेदज्ञानमेवेति विद्मः // 9 // भेदज्ञानाभ्यासत: शुद्धचेता नेता नाऽयं नव्यकर्मावलीनाम् / लीनां स्वस्मिन् नामयंस्तां नितान्तं तान्तं स्वीयं रूपमुज्जीवयेत 10 अज्ञानतो मुद्रितभेदसंविच्छक्तिः किलायं पुरुषः पुराणः / परात्मनोस्तत्त्वमसंविदानः कर्तृत्वमात्मन्यसकृत् प्रयुङ्क्ते // 11 // स्वतोऽन्यतो वाऽप्यधिगत्य तत्त्वं यदेष देवः किल संप्रबुद्धः / द्रव्यं परं नो मम नाहमस्येतीयति बुद्धिं यदि बध्यते किम् ? // 12 // प्रमाण-निक्षेप-नया: समेऽपि स्थिताः पदेऽधः किल वर्तमाने / प्रपश्यतां शान्तमनन्तमूर्ध्वं पदं न चैषां कतमोऽपि भाति // 13 // बन्धोदयोदीरणसत्त्वमुख्याः भावाः प्रबन्धः खलु कर्मणां स्यात् / एभ्यः परं यत्तु तदेव धामाऽस्म्यहं परं कर्मकलङ्कमुक्तम् // 14 // वातोल्लसत्तुङ्गतरङ्गभङ्गाद् यथा स्वरूपे जलधिः समास्ते / तथाऽयमात्माऽखिलकर्मजन्यविकारनाशात् स्पृशति स्वरूपम्॥ 15 // चैद्रूप्यमेकमपहाय परे किलामी यावन्त एव पुरुषेऽत्र लसन्ति भावाः / तान् संप्रपद्य च परत्वधिया समस्ता- .. नास्ते तदाऽऽस्रवति किं ननु कर्म नव्यम् ? . // 16 //
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