Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 18
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 15
________________ // 10 // // 11 // // 12 // // 13 // // 14 // अशुद्धनिश्चयेनायं कर्ता स्याद् भावकर्मणः / व्यवहाराद् द्रव्यकर्मकर्तृत्वमपि चेष्यते / व्याप्यव्यापकभावो हि यदिष्टः कर्तृ-कर्मणोः / तदभावे द्रव्यकर्मकर्तृत्वं घटते कथम् ? तदात्मनि भवेद् व्याप्तृव्याप्यता नातदात्मनि / . तदभावे कथं कर्तृकर्मता ज़ीव-कर्मणोः ? निमित्त-नैमित्तिकते कर्माऽऽत्मपरिणामयोः / तस्मादस्तु भ्रामकाश्मायसकृत्योरिव स्फुटम् अनादिनिधनं ज्योतिः कर्तृत्वादिविकारभाक् / स्वस्वरूपात् परिच्युत्य विशत्यन्धे तमस्यहो ! शरीरेष्वात्मसम्भ्रान्तेः स्वरूपाद् दृक् प्रविच्युता। भूताविष्टनरस्येव तस्मादेव क्रियाभ्रमः / बहिष्पदार्थेष्वासक्तं यथा ज्ञानं विवर्तते / तथैवान्तर्विवर्तेत का कथा पुण्य-पापयोः ? . देहो नास्मीति संवित्तेरात्मतत्त्वं दृढीकृतम्। / अज्ञानाहितसंस्कारात् तमेवात्मतयेक्षते देहः पुद्गलसङ्घातो जडस्त्वं तु चिदात्मकः / एतत्सौरूप्यवैरूप्ये स्यातामादौ कथं तव ? यद् दृश्यं तदहं नास्मि यच्चादृश्यं तदस्म्यहम् / अतोऽत्रात्मधियं हित्वा चित्स्वरूपं निजं श्रये मांसास्थ्याद्यशुचिद्रव्यात् स्वयमेव जुगुप्सते / तदेवात्मतया हन्त ! मन्यतेऽज्ञानसंस्कृतः तटस्थः पश्य देहादीन् मैषु स्वीयधियं सृज / स्वत्वाभिमानो ह्येतेषु संसृतेर्बीजमग्रिमम् // 15 // // 16 // // 17 // // 18 // - // 19 // // 20 //

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