Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 11
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 12
________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // कुर्वे मुक्तावली रत्नावली श्रीकनकावलीम् / सिंहनिःक्रीडिताभिख्यं, तपो लघु तथा महत् सुदुष्करं गुणरत्नसंवत्सरमहातपः / आचाम्लवर्द्धमानं च तपः षष्ठाष्टमादिकम् सेवेडहं स्थावरं कल्पं, जिनकल्पं सुदुर्वहम् / अनल्पं प्रतिमाकल्पं, यथालन्दं सुदुःसहम् कदा प्राप्य यथाख्यातं, चारित्रं मित्रमुत्तमम् / उत्पाद्य केवलज्ञानं, प्रबोध्य त्रिजगज्जनम् अष्टभिः समयैः कृत्वा, समुद्घातं महागुणम् / प्राप्नोमि श्रीमहानन्दं, महानन्दं सुनिश्चलम् ? न जरा जन्म नो यत्र, न मृत्युनं च बन्धनम् / न देहो नैव च स्नेहो, नास्ति कर्मलवोऽपि च केवलं केवलं यत्र, यत्र दर्शनमक्षयम् / अक्षयं च सुखं यत्र, वीर्यसम्यक्त्वमक्षयम् . यथा तत्रैव तिष्ठामि, तीर्खा भवमहोदधिम् / / प्रसद्य कुरु मे नाथ !, दृक्प्रसादं तथा शुभम् / इत्थं सूरिजिनेश्वरेण विनुताः सर्वे सुपर्वेश्वरस्तुत्या नित्यसुखाः सुखानि सुदृशा ध्वस्तापदां सम्पदाम् / मह्यं रातु शिवास्पदं गतमदं प्रीणन्तु सङ्गं जिनास् सर्वजगत्रयी रचयतात् कल्याणिकाद्युत्सवान् // 29 // // 30 // // 31 // // 32 //

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