Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 11
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 11
________________ // 12 / / // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // सिद्धमष्टापदे शैले, शैलेशीमाप्य योगिनाम् / सहस्रर्दशभिः शकचक्रवर्तिस्तुतं श्रये सम्मेते तीर्थकोटीरे, सुनाशीरेण संस्तुतान् / विंशति तीर्थपान् सिद्धान्, कदा वन्दे प्रमोदतः ? वन्दे श्रीधातकीखण्डे, धातकीखण्डमण्डिते / पुष्कराः परार्द्ध च, जम्बूद्वीपे महर्द्धिके भरतैरावतक्षेत्रपञ्चके श्रीप्रपञ्चके / सप्तत्यग्रं गुणैरग्रयं, शतं तीर्थकृतां कदा? . जम्बूद्वीपे महाद्वीपे, प्रदीपे तामसक्षितौ। . पूर्वेषु श्रीविदेहेषु, गेहेषु प्राज्यसम्पदाम् श्रीमत्यां पुष्कलावत्यां, विजये विजयोत्तभे। वर्तमानं चिदम्लानं, सीमन्धरजिनेश्वरम्' प्राकारत्रयमध्यस्थं, मध्यस्थं सर्वजन्तुषु / रत्नसिंहासनारूढं, वीज्यमानं च चामरैः चतुःषष्ट्या सुराधीशैविष्णुना युगबाहुना। . पूज्यमानं पञ्चचापशतीमानवपुलतम् तथाऽपरविदेहेषु, तीर्थेन्द्र श्रीयुगन्धरम् / श्रीमहाबाहुकृष्णेन, सेवितं वरपर्षदा ललाटपट्टमास्फाल्य, पृथ्वीपीठे मुहुर्मुहुः / स्तुत्वाऽऽनन्देन वन्दित्वा, कदा विज्ञपयाम्यहम् नाथ ! भीतो भवाम्भोधेर्बोधिलाभं प्रयच्छ मे। देहि दीक्षां महाशिक्षा, स्पर्श मे कुरु मस्तके स्वहस्तेन प्रशस्तेन, सर्वलक्षणराजिना। .. त्वां प्राप्य निर्वृतो भूत्वा, त्वदाज्ञां पालयाम्यहम् // 18 // / / 19 / / // 20 // // 21 // .. // 22 // // 23 / /

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