Book Title: Shakalarka Samhita Saparishishta Author(s): Publisher: View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir PRESESEG66666666661 श्चत्पुरस्ताद्वृहती द्वितीयश्चेन्यंकुसारिण्युरोवृहती स्कंधोग्रीवी वान्यश्चेदुपरिष्टाहत्यष्टिनोर्मध्ये दश-22 को विष्टारवृहती त्रिजागतोलबृहती त्रयोदशिनोर्मध्येष्टकः पिपीलिकमध्या नवकाष्टकादश्याष्टिनोविषमपदा चतुर्नवका बृहसेव // 7 // पंचमं पंक्तिःपंचपदाथ चतुष्पदाविराइदशकैरयुजौ जागतौ सतोबृहती युजौ चेद्विपरीताऽऽद्यौ चेत्यस्तारपंक्तिरन्त्यौ चेदास्तारपंक्तिराद्यान्त्यौ चेत्संस्तारपंक्तिमध्यमौ चेद्विष्टारपंक्तिः // 8 // षष्ठं त्रिष्टुप् त्रैष्टुभपदा द्वौ तु जागतौ यस्याः सा जागते / जगती त्रैष्टुभे त्रिष्टुप् वैराजौ जागतौ चाभिसारिणी नवको वैराजस्वैष्टुभश्च द्वौ वा वैराजो नवकस्टैष्टुभश्च विराट्स्थानकादशिनस्त्रयोष्टकश्च विराडूपा द्वादशिनस्त्रयोष्टकश्च ज्योतिष्मती यतोष्टकस्ततोज्योतिश्चत्वारोष्टकाजागतश्च महाबृहती मध्ये चेद्यवमध्याऽऽद्यौदशकावष्टकास्त्रयः पंक्त्युत्तराविराट्पूर्वा वा // 9 // सप्तमं जगती जागतपदाष्टिनस्त्रयः स्वौ चद्वौमहासतोबृहत्यष्टको सप्तकः पदकोदशकोनवकश्वपळष्टका वा महापंक्तिः // 10 // अथ प्रगाथाबृहतीसतोबृहत्यौ वाहतः क-२४ कुप्चेत्पूर्वाकाकुभो महाबृहतीमहासतोबृहसौमहावाहतोबृहतीविपरीते विपरीतोत्तरोनुष्टुब्गायञ्यौ / चानुष्टुभावनुटुम्मुखास्तृचाइत्युक्तेः / / 11 // मुक्तसंख्यानुवर्ततअन्यस्याः सूक्तसंख्यायाऋषिश्वान्य-| ********************* For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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