Book Title: Shahvirana Sukrut Varnan ni Prashasti Chaupai
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 8
________________ बिंब रतनमय शांति जिणंद । वीरइ भराव्यु भक्ति अमंद । खरच्यउ द्रव्य वली असमान । श्री ललितप्रभसूरि युगपरधान ॥ ३५ ।। शुभ मुहुरति सवि मेल्यु साज। करी प्रतिष्ठा जगमई अवाज । नुकार गुणनिक भोजन दीइ । नयर जमाडी लाहु लीइ ।। ३६ ।। हीरा गलसणीयां पामरी । गच्छ पहिरामणि वीरइ करी । वस्त्र दान चउरासी गच्छै ! याचक वली दीधां पछै ॥३७ ॥ करणासाहनइ पाडइ उच्छाह । संवत सोलचउसठ्यामाहि (१६६४)। कराव्यो नूतन प्रासाद । सेवंता टालइ विखवाद ॥३८ ।। रतनमय शांति जिणेसर जेह। ललितप्रभसूरि तिहां थाप्युं तेह । चैत्य प्रवेशो उच्छव बहुँ। वीरइ सज्जन संतोप्यु सहु ॥ ३९ ॥ संवत सोल ओगणसाठ्यइ करी (१६५९) । शत्रुज यात्रा वली शुभवरी। गुडीजीनी यात्रा सार। वीरइ सुकृत्य कर्यां उदार ।।४० ॥ देशमाहिं थया नामनीक। वयण ज बोलइ ठावू ठीक! माथु उपाडइ न कोइ चाड । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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