Book Title: Shahvirana Sukrut Varnan ni Prashasti Chaupai
Author(s): Pradyumnavijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/229522/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाहवीराना सुकृत वर्णननी प्रशस्ति चडपड़ । छे ! सोळा सैकाना चोथा चरण आसपास भिन्नमाल (राजस्थान ) थी अणहिलपुर पाटण आवीने वसेला शाह वीरानी आ वंशावलि छे. हस्तलिखित त्रण पानांनी पोथीमां केटकेटली पेढीना सुकृतोनुं ट्रंकमां वर्णन कर्यु 2 सं. प. प्रद्युम्नविजय प्रारंभमां, कनाशाना पाडामां स्फटिकना श्री शांतिनाथजिन बिंबनी प्रतिष्ठा वि.सं. १६५४मां थई तेनो प्रशस्ति लेख छे. ते गद्यमां छे. पछी शाहा वीराए करेलां श्रेणिबद्ध सुकृतोनी सालवार यादी छे. तेओ भिन्नमालथी पाटण रहेवा आव्या त्यारे साथे श्री महावीर स्वामीनुं जे बिंब लाव्या हता तेने ढंढेरवाडामां पधराव्युं. पोते पण त्यां ज रह्या. पछी कनाशाना पाडाना देरासर, लींबडीना वाडाना देरासरनुं निर्माण अने प्रतिष्ठा वगेरेनो लाभ लीधो. वच्चे बच्चे संघनां वर्णनो छे. वीराए प्रकट करेली अणसणनी भावनानुं वर्णन सुंदर छे अने छेले जे सागारिक दीक्षा- अणसण लीधुं तेनी पण वात नोंधपात्र छे. वीराथी लईने तेनी पेढी - दर पेढीमां सुकृतो थतां रह्या छे. वि.सं. १६१६थी १६७४ सुधी आ परंपरा चाली छे. आनंदनी वात ए छे के शाह वीरा अने तेमना वंशजोए जे जे चैत्योनुं निर्माण कर्तुं कराव्युं अने तेमां जे बिंब पधराव्यां ते आज सुधी सारी स्थितिमां विद्यमान छे. हाल पाटणमां जे नगरशेठनुं कुटुंब कहेवाय छे अने जेमनुं भगवानदास नाम छे तेओ सीधा आ शाह वीराना वंश ज थाय अने मणियाती पाडामां जे सहस्रकूटनुं घरदेरासर छे ते पण नगरशेठना कुटुंबनुं ज छे. शाह वीरा अने तेना वंशजो पौर्णमिक गच्छना निश्रावर्ति आचार्यना श्रावको छे. अत्यारे पण ए पूनमिया गच्छनी गादी ढंढरवाडामां ज गणाय छे. आ पौर्णमिकगच्छनी उत्पत्ति बारमां सैकामां वादी देव सूरिजीना गुरुश्री मुनिचन्द्र सूरिना गुरुभाई श्रीचन्द्रप्रभसूरिजीथी थई छे. आ पूनमिया गच्छना श्री भावप्रभसूरिना लखेला ग्रन्थो आजे पण पाटणना श्री हेमचन्द्राचार्य ज्ञानभंडारमां सचवायेला छे. आवी वंश प्रशस्तिओ इतिहासना तथ्योना निर्णयोमां खूबज निर्णायक बनी रहे छे. भाषा सत्तरमा सैकाना चोथा चरणनी छे. बावीसमी चौपाइमां त्रीजा चरणमां जे लांगली शब्द वापर्यो छे Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) ते सांस्कृतमां नाळीयेर (श्रीफळ) अर्थमां प्रसिद्ध छे ते छे. पूनमिया गच्छनी पट्टावलीमां पण उपयोगी थाय तेवी आचार्योनी नामावलि आमां मळे छे. श्री श्रीमालज्ञातीय वीर शाखायां वर्द्धमानगोत्रे पूर्वं भित्रमाल वास्तव्यं : श्री धर्मधोषसूरि प्रतिबोधित साहागेहा तदन्वये साहा श्री वीरा तत: ढंढेरनाम प्रतिष्ठितं । वीर वाटकं वासितं । तत्र वीरप्रासादः कारित: पश्चात् महावीरबिंब पत्तने आनीतं । ढंढेर पाटके पूज्यते ।। श्री वीरसाहावंशे । साहा लाडा । तत्सुत साहा खेता । तत्सुत दोसी हरदे । पुंजा । चं श्री रासोरंगज । तत्सुत दोशी मुख्य श्री अदा भार्या भेळाई पुत्र २ । (१) दोसी वीरा । (२) दोसी येकर । दोसी वीरा भार्या रंगाई । द्वि भार्यारूपां ॥ टोकर भार्या पनोती । तत्र दोसी मुख्य । शत्रुजय संघवीपद प्रतिष्ठित, अर्बुदाचळ संघवीपद प्रतिष्ठित । संघवी श्री वीरा भार्या रंगाई । सुत दोसी शिवजी । सुता वीरबाई । द्वितीया भार्या रूपां सुत दोसी रवजी ।सुता ३ (१) चांपा । (२) जेठी। (३) फूलां । दोसी शिवजी भार्या चंगा सुत (४) ।(१) सूरजी (२) मेघजी (३) सोमजी (४) अबजी । सुता २।(१) पकली । (२) स्तनी रवजी भार्या गंगाई सुत मनजी । थानसिंह। समरसिंह । विजयसिंह । इंद्राणी । मरघां । एवं कुटुंब सहितेन । संघवी वीराकेन संवत १६५४ वर्षे माधवदि ११ रवौ श्री शांतिनाथ रत्नमयबिंब कारापितं । प्रतिष्ठितं । बहुद्रव्यव्ययेन नमस्कार गुणनिक भोजनं कारितं । गच्छ ८४ वासिनां यतीनां वस्त्र प्रदानं कृतं ॥ श्रीमद्वीर वर्धमान पट्टोधर श्री सुधास्वामिवंशे श्री चंद्रप्रभसूरिः तदन्वये श्री पूणिमापक्षे प्रधानशाखायां श्री जयप्रभसूरिः तत्पट्टे श्री भुवनप्रभसूरिः तत्पट्टे श्री कमलप्रभसूरिः तत्पट्टे श्री पुण्यप्रभसूरिः तत्पट्टोदयाचलाऽलंकरण श्री विद्याप्रभसूरिः तत्पट्टे चतुर्दश विद्यानिधान । सरस्वती कंठाभरण । वादीमदगंजन । जंगमतीर्थ । युगप्रधान मेरिवाचल श्री ललितप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं । तदनु संवत् १६६४ वर्षे श्रावण वदि १० दिने नवीन प्रासादे स्थापितं चिरंजीयात् आचंद्राः इति करणासाहनइ पाडामध्ये शान्तिनाथ प्रशस्तिः ।। वीराकेन यानि कृतानि सुकृतानि तानि लिख्यते ॥ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) वीराकृतसुकृतसंचय चउपई ॥ वीरा सुत सोल सोलत्तरइ जाणि १६१६ | हेममय आभरण जडाव । जिन अंगई कराव्यां सभाव ॥ १ ॥ बिंब भराव्यं रूपातणुं - द्रव्य खरच्युं अतिघणुं प्रतिष्ठा करावीया सार । विद्याप्रभसूरि गुरु पधरावि ॥ २ ॥ घर देहरासर कराव्यं नवुं । तेहनुं पुण्य असंख्यातुं हवं । स्त्रात्र महोत्सव स्वजन संतोष ||३|| संवत सोल सांत्रीसइ सार (१९३७) संखेश्वरनो संघ उदार । काढ्यो संघ जमाड्यो भलो । जिन शासन कीधो ऊजलो ॥ ४ ॥ नव अंगे गुरुपूजा कीध । याचकनई बहु दानज दीध । संघपति तिलक घरइ कंठमाल । वार्जित्र वाजइ गाइ बाल ॥ ५ ॥ संवत सोल सांत्रीसई वली । विद्याप्रभसूरि दुखदली । देवंगत निर्वाण कल्याण । दोसी वीरो साधइ सुजाण ॥ ६ ॥ शुभ मांडवी रचावी करी । आडंबर रचना सवि धरी । सोनां रूपां फूल उच्छाल । करणी सवि की धां संभालि ॥७ ॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) श्री ललितप्रभ सूरिन ताम। पार्टि बइसारया गुणधाम । पदप्रतिष्ठा महोच्छव जेह । वीरो धन खरची करइ तेह ।।८।। गुस्नई पूजा करि नव अंगि । घरे पधरावइ मननइ रंग। पाट पधरावइ गोरी गाय । दान याचकाइ बहुलां थाय ।। ९ ।। गंधर्व गाय रातीजगा। जमाड्या बहु साहम्मी सगा। पदमहोत्सव कोधो गुस्तणो । वीरइ उपायो जगि जस धणो ॥१०॥ विद्याप्रभसूरीस्युं नेह । वीराने दुःख सालइ तेह । झूरइ अन्न न खाइ अंध जाणे थई बइठो निग्रंथ ॥११॥ तव श्री ललितप्रभसूरी कहइ । सदगुरुवयण वीरो सद्दहइ । तजे शोक संसारी चालि । साचो जैनधर्म संभालि ॥ १२ ।। संवत सोल ओगणच्यालीस । (१६३९) आबु संघपति तिलक जगीस । घणो द्रव्य तिहां वावर्यो । सुकृतनो इम संचो कर्यो ।।१३।। महापूजा गुरु अंगई कीध । याचकनइ वली दान ज दीध । भावि जिननी कीधी यात्रा । Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) पोष्यां साधुतणां बहु पात्र ॥१४ ॥ शत्रुजय महात्म्य सांभली। ललितप्रभसूरिनइ मुखस्ली । भेटीस्यइ शत्रुज ज्याहरिं। कडाविगइ खास्यि त्याहरइ ।। १५॥ भलो संवत सोल चुयालीस १६४४ । संघ लेई वीरो सुजगीस। श्री ललितप्रभसूरीश्वर साथि । धर्ममारग वावरतो आथि । १६ । पग पग गुरु भक्ति अणुसरइ । जेह कथन कहइ ते करइ । इंणि परि भेटयो विमलगिरींद । पूज्या रूडई आदि जिणंद ॥१७॥ अनेक सिद्ध थया कांकरइ । वीरो अणसण लेवा करइ । ललितप्रभसूरी कहइ सुणो। फ्ल भावई थयो अणसण तणो ।१८ । काल भाव ओछां संघयण । मन आजनां काचां मयण । तिहां ताई काया नवि पाडवी । धर्मसाधन हुइ जिहां घडी ॥१९ ।। इम अनुमति गुस्ह नवि दीध । वीरइ पण गुस्वयण ज कीध । तव ते लाभ अनेरो धरइ । शीलव्रत लेवा मन करइ ॥ २० ॥ बाजुठइ गुरुलई बइसारि । आगलि समोसरणनई धारि; । १. नांदि। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) चोखापुंज नालेर गुंहली । चिहुं दिशि मुंक्या दीपक वली ॥ २१ ॥ समोसरण उपरि जिनबिंब | चरमुख मुक्यो तिहां अविलंब | पहिलं हाथि लेई लांगली । नांदि फीरी मुंक ते वली ॥२२॥ किरियामां जोईइ जे वेस । वीर ते धार्यो सुविशेस । लोक मिल्या तिहां लखगान । धर्मवीवाहनी जांणे जांन ॥ २३ ॥ आठ थुई वंदावइ देव । नंदीसर (सुत) संभलावइ ततखेव । कहइ गुरु समकित आलाप । यलइ सवि मिथ्यामति व्याप ||२४|| समकित आलावो ते धरइ । पंड थकी कही नवि फरइ । समकित विण जे व्रत आखडी । बोss शिर जेहवी राखडी ॥ २५ ॥ भाइ गुरु आलापक सार । वीरो जोड हाथ उदार । शीलव्रततणो उच्चार | इंणि परि कीधो जयजयकार ॥ २६ ॥ सात खमासण द्यइ चित्त धरी । वास ठवइ गुरु हाथि करी । नित्थारपारग होहु जगीस । इंणि परि द्यइ सुगुरु आसीस ॥ २७ ॥ सुहव गाय गीत रसाल । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) वाजिंत्र वाजइ नवनव ताल । देवराइ तिहां बहुलां दान । परीयागत वधारयु वान ॥२८ ।। दश दिवस करइ रातीजगा । नुहुँतरीया जन साहम्मी सगा । धर्मगोठिइ इमराति विहाय । परभाति लहिणि (?) देवराय ।।२९ ।। महापूज आदीसरतणी। गुरुपूजा वली कीधी घणी । वधार्यो जिनतणो भंडार । साधुभक्ति करइ अपार ॥३० ।। संघ जमाड्यो ऊलटपणइ । भाट भोजक कीरति बहु भणइ । घरे आवी गुस्ने पधरावि । वस्त्र पात्र दीधां वहिरावि ।। ३१ ।। साधर्मिक धरि लहिणी कीध । सेर सेर मोदक वस्त्रादिक दीध । इंणिपरि चुधुं व्रत उच्वयें । वीरइ सुकृत पोतुं भर्यु ॥३२ ।। संवत सोल अडतालो जेह । (१६४८) वली लींबडीनइ पाडइ तेह । चैत्य करावी थाप्या स्वामि । आरासमय जिन शांति अभिराम ॥३३ ।। धन वावर्यु महोत्सव करी । सेठ वीरा कीरति विस्तरी। संवत सोल चउपन्ना सार । (१६५४) माध वदि एकमनई १ रविवार ॥३८॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिंब रतनमय शांति जिणंद । वीरइ भराव्यु भक्ति अमंद । खरच्यउ द्रव्य वली असमान । श्री ललितप्रभसूरि युगपरधान ॥ ३५ ।। शुभ मुहुरति सवि मेल्यु साज। करी प्रतिष्ठा जगमई अवाज । नुकार गुणनिक भोजन दीइ । नयर जमाडी लाहु लीइ ।। ३६ ।। हीरा गलसणीयां पामरी । गच्छ पहिरामणि वीरइ करी । वस्त्र दान चउरासी गच्छै ! याचक वली दीधां पछै ॥३७ ॥ करणासाहनइ पाडइ उच्छाह । संवत सोलचउसठ्यामाहि (१६६४)। कराव्यो नूतन प्रासाद । सेवंता टालइ विखवाद ॥३८ ।। रतनमय शांति जिणेसर जेह। ललितप्रभसूरि तिहां थाप्युं तेह । चैत्य प्रवेशो उच्छव बहुँ। वीरइ सज्जन संतोप्यु सहु ॥ ३९ ॥ संवत सोल ओगणसाठ्यइ करी (१६५९) । शत्रुज यात्रा वली शुभवरी। गुडीजीनी यात्रा सार। वीरइ सुकृत्य कर्यां उदार ।।४० ॥ देशमाहिं थया नामनीक। वयण ज बोलइ ठावू ठीक! माथु उपाडइ न कोइ चाड । Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) रखे सेठ करइ वणसाड ।।४१ ॥ राय राणा जस आणा धरइ। कथन सेठ- अलवइं करइ । दोसी वीरा प्रबल प्रताप । करइ नित देहरासर जिन जाप ॥४२।। नित्य सांभलि वखाण गुरुमुखै ।। धर्मध्यान चालइ इम सुखें। जिन शासन निज धर्मनां पर्व । नयरीमांहिं पलावइ सर्व ॥४३ ॥ पुनिम सामाचारीस्युं रक्त। देव गुरुनो पूरो भक्त । गुरुनइ विहरावीनइ जमइ । मिथ्यात्वीनी वात नवि गमइ ॥४४ ॥ ललितप्रभसूरिस्युं अधिको भाव । गुरुनइ द्यइ पुस्तक लिखावि । जथाशक्ति जिनशाशन सार। नगरमांहिं प्रवविणहार ।।४५ ।। ढंढेरवाडामांहिं जाण । साभलो पारसनाथ वखाण । . वीरइ देहरातणुं मंडाण। मंडाव्युं उंचु अहिठाण ।।४६ ॥ संवत सोल बिहुत्तरि संगि (१६७२) । थई असमाधि वीरानई अंगि । सुगुरु ललितप्रभसूरी पासि । महाव्रत भार लीउ उल्लासि ।।४७ ॥ निजघरि संथारो एकांति । गुरु पासई राख्या नीरांति । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) साधुतणी किरीया दिन पंच । ते पणि पाली मन अखलंच ।। ४८ ॥ सुख समाधई रूडइ ध्यान । की, अणसण तणुं विधान । देवंगत थया वीरो इंम। गुण वरणवी सकुं हुं किम ।। ८३ ॥ वोरा साधुतणी मांडवो। युगति घणी कीधी नवनवी । निहरण कारज विधस्युं कीध । सुत शिवजीइं लाहो लीध ।।५० ॥ केही करुं वीरा जोडली । गुण घणानई मति थोडली । सेवक इणिपरि करइ अरदास । वीरा संतति पुंहचइ आस ॥५१ ।। इति श्री दोसी वीराकृत सुकृतसंचय चउपई संपूर्णा ॥ पछइ सेठ शिवजी दोसीइं सामला पार्श्वनाथनुं देहरु पूरु कराव्युं । केतलाइक गृहिस्थनी सांनिधि ! शत्रुजयादिक तीर्थनी घणी यात्रा करी साहम्मीवत्सलादिकघणां कर्यां घणुं जिनशासनना प्रभावकथयां | घणुं निज देवगुरुना भक्त थया । तिहार पछी सुत मेघजी दोसी शेठ थया घणुं शासनना प्रभावक । घणी यात्राना कारक । स्वज्ञाति भोजनकारक । कृत साटिका पहिरामणी । घणुं मर्यादी जैन श्रावक थया । तत्सुत दोसी चांपइ । जयतसी प्रतापसी । तिलकसी । प्रेमो ॥ दोसी अखईइं भलीपरि सेठी करी घणुं निजदेवगुरुला रागी थया । जिनशासन प्रभावक तिहार पछी दोसी श्री जयतसी सुत दोसी श्री तेजसी शेठ थया। तत् कृत सुकृत...। संवत १७७४ वर्षे ज्येष्ट सुदि ८ सोमे । पत्तन मध्ये । श्री श्रीमाली ज्ञातीय। दोसी श्री वीरासुत । दो। श्री शिवजी सुत । दो। श्री मेघजीभार्या सहिजूबाई सुत। दो । श्री जयतसी भार्या रामबाई सुत दोसी श्री तेजसीभार्या देव बाई सुता पुंजी १ सुत गुलाब। द्विभार्या राधाकृष्ण सुता लहिरकी । सुत मलूक प्रमुख सपरिवारयुत्त । दो। श्री तेजसीकेन सुखश्रेयो) श्री पार्श्वनाथादि बिंब सहस्त्र पित्तलमय: कोष्ठः कारितः । श्री पूर्णिणमा पक्षे ढंढेरपाटके । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (38) भ / श्री महिमाप्रभसूरिस्तत्पट्टे / भ / श्री भावप्रभसूरीणामुपदेशात् कृत महामहोत्सवेन प्रतिष्ठापितश्च / इति श्री सहस्सकोट प्रशस्ति : हेठई लिखी छइ परकरें / देशी कडखानी // जास सुपसाय कविराय हिवइ वर्णवइ / नगर सोभनीकनी कीर्ति सुणोइ।।१।।सक० श्री श्रीमाल सुविशाल वंशइवरु। दोसी श्री तेजसी तेजि दिपई। नगर सणगार महाजन शिर सेहरो / वांकडां वइरीयांने जे जीपइ / / 2 / / निज परीयागत रीतराखण भणी / असार संसारमा सार जांणी / सफल निज जन्म करवा भवी तारवा / वारवा सयल दुरगति खाणी // 3 / / पारसनाथ जगनाथ आदि सहुँ / सहस्स पित्तलमयबिंब वारु। सहस्सकोटि नाम तीर्थ करावीउं / रूप सौवर्ण दीसइ दीदारू / / 4 || सत्तर चिमोत्तरइ ज्येष्ठ सुदि आठमि / वार सोमई सहु संघ युक्तई / प्रतिष्ठा करावी घरि घणई महोत्सवइ / सुगुरु श्री भावप्रभसूरि भक्तिं // 5 // संघ सन्मान बहुदान याचक भणि / तपजप पुण्यनी रीति पोषो / दोशी श्री जयतसी सुपुत्र सोहामणो / दूर गया हिवइ पाप दोषी / / 6 / / धन धन मात रामां जिणई जनमोओ / पुंनिम गच्छ प्रभावकारी / कहइ शांतिदास अरदास सुणो सेठजी / सकल जंतु तणो तुं उपगारी / / 7 // सं. 1656 कुंभारीया पोलैं सोनी अमीचंदई आदिनाथनो प्रासाद कराव्यो / सोनी अमीचंद / सुत / सो. ऋषभदास / सुत / सो. शांतीदास / सुत / सो. सामलासक्ल / अमर। लखो / सुंदर।