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(३६)
रखे सेठ करइ वणसाड ।।४१ ॥ राय राणा जस आणा धरइ। कथन सेठ- अलवइं करइ । दोसी वीरा प्रबल प्रताप । करइ नित देहरासर जिन जाप ॥४२।। नित्य सांभलि वखाण गुरुमुखै ।। धर्मध्यान चालइ इम सुखें। जिन शासन निज धर्मनां पर्व । नयरीमांहिं पलावइ सर्व ॥४३ ॥ पुनिम सामाचारीस्युं रक्त। देव गुरुनो पूरो भक्त । गुरुनइ विहरावीनइ जमइ । मिथ्यात्वीनी वात नवि गमइ ॥४४ ॥ ललितप्रभसूरिस्युं अधिको भाव । गुरुनइ द्यइ पुस्तक लिखावि । जथाशक्ति जिनशाशन सार। नगरमांहिं प्रवविणहार ।।४५ ।। ढंढेरवाडामांहिं जाण । साभलो पारसनाथ वखाण । . वीरइ देहरातणुं मंडाण। मंडाव्युं उंचु अहिठाण ।।४६ ॥ संवत सोल बिहुत्तरि संगि (१६७२) । थई असमाधि वीरानई अंगि । सुगुरु ललितप्रभसूरी पासि । महाव्रत भार लीउ उल्लासि ।।४७ ॥ निजघरि संथारो एकांति । गुरु पासई राख्या नीरांति ।
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