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________________ (३७) साधुतणी किरीया दिन पंच । ते पणि पाली मन अखलंच ।। ४८ ॥ सुख समाधई रूडइ ध्यान । की, अणसण तणुं विधान । देवंगत थया वीरो इंम। गुण वरणवी सकुं हुं किम ।। ८३ ॥ वोरा साधुतणी मांडवो। युगति घणी कीधी नवनवी । निहरण कारज विधस्युं कीध । सुत शिवजीइं लाहो लीध ।।५० ॥ केही करुं वीरा जोडली । गुण घणानई मति थोडली । सेवक इणिपरि करइ अरदास । वीरा संतति पुंहचइ आस ॥५१ ।। इति श्री दोसी वीराकृत सुकृतसंचय चउपई संपूर्णा ॥ पछइ सेठ शिवजी दोसीइं सामला पार्श्वनाथनुं देहरु पूरु कराव्युं । केतलाइक गृहिस्थनी सांनिधि ! शत्रुजयादिक तीर्थनी घणी यात्रा करी साहम्मीवत्सलादिकघणां कर्यां घणुं जिनशासनना प्रभावकथयां | घणुं निज देवगुरुना भक्त थया । तिहार पछी सुत मेघजी दोसी शेठ थया घणुं शासनना प्रभावक । घणी यात्राना कारक । स्वज्ञाति भोजनकारक । कृत साटिका पहिरामणी । घणुं मर्यादी जैन श्रावक थया । तत्सुत दोसी चांपइ । जयतसी प्रतापसी । तिलकसी । प्रेमो ॥ दोसी अखईइं भलीपरि सेठी करी घणुं निजदेवगुरुला रागी थया । जिनशासन प्रभावक तिहार पछी दोसी श्री जयतसी सुत दोसी श्री तेजसी शेठ थया। तत् कृत सुकृत...। संवत १७७४ वर्षे ज्येष्ट सुदि ८ सोमे । पत्तन मध्ये । श्री श्रीमाली ज्ञातीय। दोसी श्री वीरासुत । दो। श्री शिवजी सुत । दो। श्री मेघजीभार्या सहिजूबाई सुत। दो । श्री जयतसी भार्या रामबाई सुत दोसी श्री तेजसीभार्या देव बाई सुता पुंजी १ सुत गुलाब। द्विभार्या राधाकृष्ण सुता लहिरकी । सुत मलूक प्रमुख सपरिवारयुत्त । दो। श्री तेजसीकेन सुखश्रेयो) श्री पार्श्वनाथादि बिंब सहस्त्र पित्तलमय: कोष्ठः कारितः । श्री पूर्णिणमा पक्षे ढंढेरपाटके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229522
Book TitleShahvirana Sukrut Varnan ni Prashasti Chaupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnavijay
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size311 KB
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