Book Title: Shadjiv Nikay Suraksha hi Paryavaran Suraksha
Author(s): Dharmchand Muni
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 4
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ काल में आमने-सामने के युद्ध तीर-तलवार व भालों से लड़े जाते थे, तब आत्म रक्षा करने में कछुए या गेंडे की मोटी चमड़ी के ढाल'कवच काम आते थे। पढ़ा है-नदी-जल-सफाई हेतु कछुओं को पाला जा रहा हैं, बड़े होने पर गंगा व अन्य नदियों में छोड़ दिए जाते हैं, वे अधजले शवों आदि को खाकर प्रदूषण रोकने में मदद करते हैं। केंचुआ भी प्रदूषण रोकने में लाभकारी है। जलचरों का एक बड़ा समूह किसी हद तक प्रदूषण रोके हुए है। प्राचीन काल में दुश्मनों को खदेड़ने में मधुमक्खी, सांप-बिच्छु आदि की अति विशिष्ट भूमिका रहा करती थी। आज भी मधुमक्खियों का मधु व सर्पविष अनेक विध रोगों के जर्स रूप शत्रुओं को भगाने में सार्थक भूमिका निभाते हैं। हरियाली के संवर्धन में भी पशु-पक्षियों की अति महत्वपूर्ण भूमिका निर्विवाद है। उनका मल-मूत्र, खाद बनकर धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। कौन नहीं जानता कि-भेड़ बकरियों के झुण्डों का एक दो रात्रियों का प्रवास, खेतों की उर्वरता को बढ़ाने में चार चांद नहीं लगा देता! गौओं के गोबर की खाद से उत्पन्न अन्न तथा गोबर के उपलों से पकी रसोई का स्वाद कुछ अलग ही होता है। फलभक्षी पक्षी फल खाते हैं, फलों में बीज भी शामिल होते हैं। पीपल, बरगद आदि फलों के भक्षित बीजों को पक्षीगण दूर-दराज के क्षेत्रों में उत्सर्जित कर देते हैं, वहां देखते ही देखते संबंधित पौधे पनपने लगते हैं, विशेषतः पीपल बिना श्रम कहीं भी उग सकता हैं प्रदूषण निवारण में पीपल की उल्लेखनीय भूमिका ऊपर वर्णित है।। । इन्हीं सब आधारों पर भारतीय संस्कृति में जीव जंतु पूजे जाते रहे हैं। सर्पपूजा प्रसिद्ध ही है। मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। अनेक राजाओं के राष्ट्रध्वजों में वानर - गरूड़ आदि के मान्य चिन्ह होते थे, आज भी भारत के राष्ट मान्य अशोक चक्र में सिंह विराजमान हैं। लोक भाषा में रामसेना के प्रखर सैनिक - वानर, रीछ, भालू ही थे। चौबीस तीर्थकरों में से प्रथम ऋषभदेव का वृषभ दूसरे अजितनाथ का हाथी, संभवनाथ का अश्व, अभिनन्दन का वानर, सुमति का चक्रवाक पक्षी, सुविधि का मगर, श्रेयांस का गेंडा, वासुपूज्य का महिष, विमल का शूकर, शांतिनाथ का-हिरण, कुंथुनाथ का बकरा, अरनाथ का-मछली, मुनि सुव्रत का कछुआ, पार्श्वनाथ का सर्प, महावीर का सिंह चिन्ह थे। क्या ये प्रतिपादन, प्रदूषण के विरूद्ध संघर्षरत जीव जंतुओं की अहम भूमिका का सही-सही आंकलन नहीं है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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