Book Title: Shadjiv Nikay Suraksha hi Paryavaran Suraksha
Author(s): Dharmchand Muni
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 3
________________ एक दिन में आवश्यक होती है। एक पाच साल का नीम का पेड़ एक औसत परिवार के लिए पर्याप्त प्राणवायु प्रदान कर सकता है। पचास वर्ष के जीवन काल में एक पीपल का वृक्ष २२५२ किलोग्राम कार्बन-डाई-आक्साइड शोषण कर १७१६ किलोग्राम आक्सीजन उत्सर्जित करता है । स्वास्थ्यवर्धक पीपल की पत्तियां रात में भी आक्सीजन प्रदान करती है। हर वृक्ष ५० वर्षो में ढाई लाख रू. मूल्य की आक्सीजन उत्पन्न करता है । प्राचीन भारत की विश्वकल्याणी संस्कृति वनों में ही फली फूली है। ऋषि-मुनियों ने झाड़ोपहाड़ों-गुफाओं में ही विश्व प्रकाशी ज्ञान पाया है। श्रमण महावीर ने शाल वृक्ष के नीचे गोदुहासन में केवल ज्ञान पाया। भ. बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे बोधि लाभ किया। भारतीय परम्परा में तुलसी, पीपल, बरगद, आंवला अशोकवृक्ष, वटवृक्ष आदि का विशिष्ट स्थान है। पर्यावरण शुद्धि में वनों का महत्व निर्विवाद है । पेड़-पौधों के लिए जो है वही सब पशु-पक्षियों के लिए भी है । आज प्रमाणित हो गया है कि प्रदूषण की रोकथाम में जलचर जीवों तक का महत्वपूर्ण योगदान रहता है, अदने से प्रतीत होने वाले कीड़े-मकोड़े जैसे जीव भी प्रदूषण से निपटने में सार्थक भूमिका निभाते हैं । पन्द्रह वर्षो से अधिक समय तक शोध कार्य करने के बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि पर्यावरण में स्थित प्रदूषण का पता लगाने के लिए मधुमक्खी बेहद उपयोगी है । अन्यान्य जीव-जंतुओं की सार्थक भूमिका अन्वेषणीय है। निश्चित ही प्रदूषण की भयानक परिस्थितियों से निपटने में जीव-जन्तुओं ने रक्षाकार भूमिका अदा की है - कृतज्ञ विज्ञ समाज ने उनके उपकारक महत्व को चिरस्थायी बनाने हेतु ज्योतिषचक्र में प्रतीकात्मक रूप में उन्हें प्रवेश दिया हैं। द्वादश राशियों में जीव-जन्तुओं के नाम पर सात राशियों - मेष, वृष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, मकर, मीन जलचर हैं, शेष थलचर । अष्टादश पुराणों में चार वराह, कूर्म, गरुड़, मत्स्य जानवरों के नाम पर हैं । दत्तात्रय के चौबीस गुरूओं में बारह कबूतर, अजगर, पतंगा, भ्रमर, कुरूपक्षी, मधुमक्खी, हाथी, मृग, मछली, सर्प, मकड़ी, भृंगीपक्षी - जानवर हैं, जिनसे दत्तात्रेय ने ज्ञान लिया। योग में जानवरों से प्रेरणा पाकर ही विभिन्न मुद्राएं सृजित की गई हैं। अनेक आसन जानवरों के नाम पर हैं यथा -- सर्पासन, गरुड़ासन, मत्स्यासन, मकरासन आदि । दर्शन दिग्दर्शन “कूर्माङ्गानीव सर्वशः” जैसे श्रीमद गीता तथा जैनागमों के पद्य, वृहत्तम शिवमंदिरों में कछुए के समाहित अंगों के प्रतिरूप, इन्द्रिय निग्रह का निर्देश देते हैं । प्राचीन Jain Education International 2010_03 १८७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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