Book Title: Shabda Prayogoni Pagdandi Par Author(s): H C Bhayani Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ हं, हुं कोई नाम दईने आसपास रहेली व्यक्तिने बोलावे त्यारे, (१) वात करनार श्रोता वक्ता कहेवुं सांभळे छे के तेना कहेवामां संमत छे के केम, जाणवा, (२) कोई वार्ता कहे त्यारे तेमां बच्चे वच्चे तेना श्रोताना प्रतिसाद तरीके होंकारी करवा के भरवामां आवे छे। एहं के हुं तरीके लेखनमां व्यक्त कराय छे। मोढुं खुलुं राखीने होंकारो आपे त्यारे घणुंखरुं ते हं रूपे संभळाय छे, पण बंध मोढे भणातो होंकारो हुं तरीके पण संभळाय छे अने लेखनमां व्यक्त कराय छे। सं. आम् परथी हं (हिन्दी हां ) ऊतरी आवेल छे, तेमां हकारनो अग्रागम थयेलो छे । मोढुं बंध होय त्यारे जीभना पाछळना भागमांथी, गळामांथी ए उद्गार कढातो होवाथी अने अनुनासिक / अनुस्वारनो प्रभाव होवाथी खुल्ले मोंए उच्चाराता अ स्वर ने बदले पृष्ठस्वर उ बोलाय - संभळाय छे। एटले के हं- नुं उच्चारण हुं जेवुं थाय छे। हुंकारोने बदले होंकारो कहेवाय छे, ते हुंकार दर्पसूचक होवाथी, अर्थगूंचवण वळवा माटे एवी अटकळ करी शकाय । वार्ता सांभळतां बाळक होंकारो पूरे छे, तेनो संस्कृतमां हुं अने हुंकार रूपे निर्देश थयो छे. आ सर्वसामान्य अनुभवनो बिल्वमंगले पोताना एक मुक्तकमां सरस उपयोग कर्यो छे । ए मुक्तक नीचे प्रमाणे छे - तेमां यशोदा बाल- कृष्णने राम-सीतानी वार्ता कहे छे अने कृष्ण होंकारो दे छे 'रामो नाम बभूव', 'हुं', 'तदबला सीतेति', 'हुं', 'तौ पितुर्वाचा पंचवटी - तटे विहरतां तामाहरद् रावणः ।' 'निद्रार्थं जननी - कथामिति हरेहुंकारतः शृण्वतः ।' 'सौमित्रे व धनुर्धनुर्धनुरिति व्यग्रा गिरः पांतु वः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ('कृष्णकर्णामृत', २.७२) www.jainelibrary.orgPage Navigation
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