Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 39 Anuyogdwar Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम
(४५)
प्रत
सूत्रांक
[१]
दीप
अनुक्रम
[3]
[भाग-३९] “अनुयोगद्वार” - चूलिकासूत्र - २ (मूलं + वृत्ति:)
मूलं [१] / गाथा ||--II
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... आगमसूत्र -[ ४५], चूलिकासूत्र - [२] अनुयोगद्वार मूलं एवं हेमचन्द्रसूरि-रचिता वृत्तिः
च सकलजिनवचनानुयोगकरणे कुशलतामासादयति, तत्कुशलतायां च विप्रहाय हेयानुपादाय उपादेयान् संप्राप्य प्रकर्षचचरणकरणं कृत्वाऽतिदुष्करतपश्चरणं अनुभूय विशदकेवलालोकतः सकलत्रिलोकीतलसाक्षात्करणं प्रविश्य सकलकर्म्मविच्छेदकर्तृ शैलेशीकरणं सकलमुक्तजनशरणं परमपदमधिगच्छतीति । सम्बन्धोऽप्युपायोपेपलक्षणो गम्पत एव, वचनरूपापन्नं हि शास्त्रमिदमुपायस्तदर्धस्तूपेय इति । एवं च समस्तशास्त्रकाराणां समयः परिपालितो भवति, उक्तं च तैः - "संबंधभिधेयपओयणाई तह मंगलं च सत्यम्मि। सीस| पवित्तिनिमित्तं निव्विग्घत्थं च चिंतिजा ॥ १ ॥" इत्यलं विस्तरेण ॥ १ ॥
तत्थ चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिजाई णो उद्दिसंति णो समुद्दिसंति णो अणुण्णविज्जंति, सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ (सू०२-१०१८ )
यदि नाम ज्ञानं पञ्चविधं प्रज्ञसं ततः किमित्याह - 'तत्थे'त्यादि, 'तत्र' तस्मिन् ज्ञानपञ्चके आभिनिबोधिकावधिमनः पर्यायके वलाख्यानि चत्वारि ज्ञानानि 'उप्पाइति' स्थाप्यानि असंव्यवहार्याणि, व्यवहारनयो हि | यदेव लोकस्योपकारे वर्त्तते तदेव संव्यवहार्ये मन्यते, लोकस्य च हेयोपादेयेष्वर्थेषु निवृत्तिप्रवृत्तिद्वारेण प्रायः १. सम्बन्धाभिधेयप्रयोजनानि तथा महल व शास्त्रे शिष्यप्रवृत्तिनिमित्तं निर्विप्रार्थं च विन्तयेत् ॥ १ ॥ २ णो उद्दिविनंति णो समुद्दिसति प्र
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