Book Title: Satyamev Jayte Nanrutam
Author(s): M S Mahendale
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ 350 ] सत्यमेव जयते नानृ. एतैद उपायर यतते यस्तु विद्वान् तस्य एष प्रात्मा विशत ब्रह्म धाम / संप्राप्य एनम् ऋषयो ज्ञान तृप्ताः कृतात्मानो वीतरागाः प्रशान्ताः / / 3-2-4-5 // एक बीजा आक्षेप एवो के उपनिषदो मां 'ऋषिःब्रह्म जयति' एवो प्रयोग मलतो नथी। आबात साची छे। पण जयतिने बदलेई सत्यम् इविन इसाय ईसथ क्रियापदोना उपयोग नीचे ना वाक्यो मां जोवा जेवा छेः सत्येन लभ्यः .... प्रात्मा (मु०३-१-५) नायामात्मा प्रवचनेन लभ्यः (मु० 3-2-3) तस्माद विद्यया....... उपलभ्यते ब्रह्म (मैत्रि 4-0) ब्रह्मचर्येण प्रात्मानाम् अनुविन्दते (छा-८-५) ब्रह्म प्राप्तः (कठ-६-१८) अत्र ब्रह्म समभु ते (कठ 7-14 वृह० 4-47), 'जयति' विशेषण उपर छां-२-१०-५-६ मानु साहित्यनी प्राप्ति अने साहित्य थी जेपर छे तेनी प्राप्ति तिथेन वाक्य टांकी शकायः एव विशेन आदित्यम् प्राप्नोति .....द्वाविशेन परम् आदित्या ज्जयति / एक ठेकारणे साहित्यनुज अंतिम ध्येय जे ब्रह्म तेंना साथ ऐक्य ब्रह्मचर्येण श्रद्धया विद्यया प्रात्मानम् अन्विष्य आदित्यम् अभिजयन्ते / एतद्वै प्राणानाम् अपतनय एतद् अमृतम् अभयम् एतद् परायणम् एतस्यान्न पुनरावर्तना इति / आ वाक्यमा पहेला आत्माना अन्वेषणना साधनो पाप्या छ / अनेते पछी तरतज आदित्यम् अभिजयन्ते नो प्रयोग छ / मुण्डकमां पण पहेलां प्रात्म प्राप्ति ना साधनों बताव्या छे अने तेपछी तरतज 'सत्यमेव जयते' नो प्रयोग छ / प्रश्न मांन प्रादित्यम् अभिजयन्ते अने मुण्डकमान सत्यमेव जयते या वन्ने वाक्यो जे स्थितिमा अाव्या छे तेमानी सरखामणी पापणे ध्यानमां लईए तो सत्यमेव जयते नो जे अर्थ अमे बताववामां आव्योछे ते विशे शक रही शके नथी / उपरना बधा विवेचन माँ एव मनायुनथीं के 'सत्यमेव जयते' ना 'सत्यनोज जय थाय छे' एवो अर्थ कयारेव थई शके नथी / ए वाक्यनो जो प्रकारण निरपेक्ष उपयोग को होय तो तेना तेवो अर्थ लेवामां कोई भूल नथी। ते अर्थ पण शास्त्रशुद्र छे तेथी अर्थनी ज्यां विवक्षा छे त्यां स्वतंत्र रीते ए वाक्यनो उपयोग कर्यो होय त्यां पण उपनिषदमां मलतो मूलनोज अर्थ कायम राखवो जोइए एवो आलेख लखवामां प्राग्रह नथी / आग्रह एटला पर तोज छे के मूल उपनिषदमांज ए अर्थ होवानु जे आज सुधी मनायु छे ते योग्य लागतुन थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5