Book Title: Satikachatvar Karmgrantha
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ प्रस्तुत संपादनमां ग्रन्थने अन्ते छ परिशिष्टो आपवामां आव्यां छे. जेमांना पहेला परिशिष्ठमां टीकाकारे प्रमाण तरीके उद्धरेल शास्त्रीय पाठो, गाथाओ अने श्लोक विगेरे अकारादि क्रमथी स्थलनिर्देशपूर्वक आपवामां आव्या छे. बीजा अने बीजा परिशिष्टमां अनुक्रमे कर्मग्रन्थनी टीकामां आवता ग्रन्थ अने ग्रन्थकारोनां नामोनो क्रम आपवामां आव्यो छे. चोथा परिशिष्टमां प्रस्तुत कर्मग्रन्थ अने तेनी टीकामां आवता कर्मग्रन्थविषयक पारिभाषिकशब्दो के जेनी व्याख्या मूळमां तेम ज टीकामां आपवामां आवी छे तेनो स्थलनिर्देशपूर्वक कोश आपवामां आव्यो छे. पांचमा परिशिष्टमा कर्मग्रन्थनी टीकामां आवता पिण्डप्रकृतिसूचक शब्दोनो कोष आपवामां आव्यो छे. अने छट्ठा परिशिष्टमां वर्तमानमां उपलब्ध थता श्वेताम्बर-दिगम्बर संप्रदायना कर्मविषयक समग्र साहित्यनी नोंध आपवामां आवी छे. कर्मग्रन्थोनुं महत्त्व । जैन साहित्यमा कर्मग्रन्थोनु केटलुं उच्च स्थान छे ए माटे आ ठेकाणे एटलं ज कहेवू बस थशे के-जैन दर्शन ए काल स्वभाव आदि पांचे कारणोने मानवा छतां एणे अमुक वस्तुस्थिति अने दर्शनान्तरोनी मान्यताओने ध्यानमा लई कर्मवाद उपर कांइक वधारे भार मूक्यो छे. एटले जैनदर्शन अने जैन आगमोनुं यथार्थ अने संपूर्ण ज्ञान कर्मतत्त्वने जाण्या सिवाय कोई पण रीते थई शकतुं नथी. अने ए विशिष्ट ज्ञान मेळववा माटेनुं प्रारम्भिक मुख्य साधन कर्मग्रन्थो सिवाय बीजं एक पण नथी. कर्मप्रकृति, पञ्चसंग्रह आदि कर्मसाहित्यविषयक विशाल अने दरिया जेवा ग्रन्थोमां प्रवेश करवामाटे कर्मग्रन्थोनो अभ्यास अतिआवश्यक होई कर्मग्रन्थोनुं स्थान जैन साहित्यमां अतिगौरवभयुं छे. कर्मग्रन्थोनो परिचय । ___ आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिए पांच कर्मग्रन्थोनी रचना करी छे, ते पैकीना चार कर्मग्रन्थोने आ विभागमा प्रकाशित करवामां आवे छे, तेम छतां आ ठेकाणे आचार्य श्रीदेवेन्द्रसूरिना पांचे कर्मग्रन्थोनो परिचय आपवामां आवे छे. नाम-आचार्य श्रीमान् देवेन्द्रसूरिए जे पांच कर्मग्रन्थोनी रचना करी छे तेनां नाम अनुक्रमे आ प्रमाणे छे-कर्मविपाक, कर्मस्तव, बन्धस्वामित्व, पडशीति अने शतक. आ नामो ग्रन्थनो विषय अने तेनी गाथासंख्याने लक्ष्यमां राखीने ग्रन्थकारे पाडेलां छे. पहेला त्रण नामो ग्रन्थना विषयने ध्यानमा राखीने पाडवामां आव्यां छे, ज्यारे षडशीति अने शतक ए बे नाम ते ते कर्मग्रन्थनी गाथासंख्याने अनुलक्षीने पाडवामां आव्यां छे. चोथा कर्मग्रन्थनी गाथा ८६ छे माटे तेनुं नाम षडशीति राखवामां आव्युं छे अने पांचमा कर्मग्रन्थनी गाथा १०० छे माटे तेनुं नाम शतक राखवामां आव्युं छे. आ रीते पांचे कर्मग्रन्थनां जुदां जुदां नाम होवा छतां अत्यारे सामान्य जनता आ कर्मग्रन्थोने पहेलो कर्मग्रन्थ, बीजो कर्मग्रन्थ, बीजो कर्मग्रन्थ ए नामथी ज ओळखे छे. For Private and Personal Use Only

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