Book Title: Satikachatvar Karmgrantha
Author(s): Chaturvijay
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ टीकाकार जे पदार्थं विवेचन करे छे ते पदार्थने वधारे स्पष्ट अने मजबूत करवामाटे आगम, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णी, टीका अने पूर्वमहर्षिविरचित प्रकरणग्रन्थोमांथी ते विषयने लगतां प्रमाणो टांकी दे छे. कोई कोई ठेकाणे तो दिगंबर, पुराण बौद्ध अने आयुर्वेदविषयक शास्त्रोनां प्रमाणो मूकी ते ते पदार्थोने सप्रमाण सिद्ध कर्या छे. आ प्रमाणे नव्य कर्मग्रन्थोनी आ टीका एटली तो विशद, सप्रमाण अने कर्मतत्त्वना विषयथी भरपूर छे के एने जोया पछी प्राचीन कर्मग्रन्थो अने तेनी टीका टिप्पणी विगेरे जोवानी जिज्ञासा लगभग शांत थई जाय छे. टीकानी भाषा सरळ, सुबोध अने हृदयंगम होवाथी पठन पाठन करनार सरलताथी कर्मतत्त्वना विषयने प्राप्त करी शके छे. जो के आ टीकामां ठेका अनुयोगद्वार, नंदी अने प्राचीन कर्मग्रन्थ विगेरेनी टीकाना अक्षरशः संदर्भोना संदर्भो नजरे पडे छे पण तेटला मात्रथी अद्भुत अने अपूर्व संग्रह तरीके आ टीकानुं गौरव कोई पण ते खंडित थतुं नथी. आ विभागमां आवेल सटीक चार कर्मग्रंथों प्रमाण ५९३८ श्लोक अने २८ अक्षर छे. कर्मविषयक साहित्य - जैनधर्म मुख्यपणे कर्मसिद्धान्तने माननार होई तेनी श्वेतांबर अने दिगंबर ए बन्ने य शाखामां थयेल स्थविरोए अने विद्वान् आचार्यवर्योए जे विविध प्रकारना विपुल ग्रन्थोनी रचना करी छे ए समग्र साहित्यनो अध्ययन दृष्टिए तेमज तुलनात्मक पद्धतिए अभ्यास करवा इच्छनारने उपयोगी थाय ते माटे प्रस्तुत प्रकाशनने अंते उपलभ्यमान समग्र कर्मविषयक साहित्यनो परिचय आपनार एक परिशिष्ट आप्युं छे. आ परिशिष्ट जोवाथी दरेकने ए पण ख्यालमां आवशे के अगाध प्रतिभाशाली जैनाचार्योए कर्मविषयक साहित्यने विधविध रीते केटला विशाळ प्रमाणमां खेड्युं छे ?. - ग्रन्थकारनो परिचय. १ ग्रन्थकर्ता — स्वोपज्ञटीकायुक्त नव्य पांच कर्मग्रन्थना प्रणेता बृहत्तपागच्छीय श्रीमान् जगच्चंद्रसूरिजीना शिष्य श्रीदेवेन्द्रसूरि छे, ए वात प्रत्येक कर्मग्रन्थनी प्रशस्ति jarat गुरुगुणरत्नाकर काव्य आदि अनेक ग्रन्थोना आधारे निर्विवाद रीते सिद्ध छे. २ समय - श्रीदेवेन्द्रसूरिनो स्वर्गवास विक्रमसंवत् १३२७ मां थयानो उल्लेख गुर्वावलीमा स्पष्ट रीते मळे छे. ए उपरथी एमनो समय लगभग विक्रमनी तेरमी शताब्दीनुं उत्तरार्द्ध अने चौदमी शताब्दीनो प्रारंभ कही शकाय एमना जन्म, दीक्षा, सूरिपदप्रतिष्ठा आदिना समयनो उल्लेख कोई पण स्थळेथी मळी शकतो नथी, तेम छतां श्रीमान् जगच्चन्द्रसूरिए क्रियाउद्धार कर्यो ते समये तेओश्री दीक्षित अवस्थामां होवानो संभव छे. श्रीमान् जगच्चन्द्रसूरिए तपागच्छनी स्थापना करी त्यार बाद श्रीदेवेन्द्रसूरि अने श्रीविजयचन्द्रसूरिने सूरिपद समर्पण कर्यानुं वर्णन गुर्वावलीमां आवे छे. १ पत्र - १२ श्लोक-११७ जुओ. २ पत्र-८ श्लोक - ४० जुओ ३ पत्र १६ श्लोक १४७ जुओ. ४ पत्र. ११ श्लोक १०७ जुओ. For Private and Personal Use Only

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