Book Title: Sastravartasamucchaya
Author(s): Haribhadrasuri, K K Dixit
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 14
________________ समूची परिस्थिति का स्पष्ट प्रतिबिम्ब हम हरिभद्र के शास्त्रवार्त्तासमुच्चय में पाते हैं । १३ - एक बात और ध्यान में रख ली जाए। मोक्ष संबंधी प्रश्न के दो पहलू हैं— जिनमें से एक तब सामने आता है जब हम जानना चाहते हैं कि मोक्षप्राप्ति के लिए मनुष्य को क्या साधन काम में लाने चाहिए और दूसरा तब जब हम यह जानना चाहते हैं कि मोक्ष प्राप्ति कर लेने पर चेतनतत्त्व का स्वरूप कैसा हो जाता है; संक्षेप में प्रश्न का पहला पहलू मोक्ष - साधनविषयक है, दूसरा मोक्षस्वरूपविषयक । वस्तुतः एक दार्शनिक कृति में मनुष्य के चरम करणीय से संबंधित स्थल वे हुआ करते हैं जहाँ चर्चा का विषय मोक्ष - साधन है, जबकि इस कृति के वे स्थल जहाँ चर्चा का विषय मोक्ष स्वरूप है उन स्थलों के साथ जाने चाहिए जहाँ चर्चा का विषय वस्तु जगत का चरम स्वरूप है । [ यदि मनुष्य के चरम करणीय की चर्चा करने वाले शास्त्र का पारिभाषिक नाम 'आचारशास्त्र' (Ethics) है तथा वस्तु जगत् के चरम स्वरूप की चर्चा करनेवाले शास्त्र का पारिभाषिक नाम 'सत्ताशास्त्र' (Ontology), तो हम कह सकते हैं कि मोक्ष - साधन संबंधी प्रश्न आचारशास्त्रीय प्रश्न हैं, जबकि मोक्ष- स्वरूप संबंधी प्रश्न सत्ताशास्त्रीय प्रश्न हैं ।] इस पृष्ठभूमि में हम शास्त्रवार्तासमुच्चय की विषयवस्तु को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँट सकते हैं: पहला भाग वह जहाँ चर्चा का विषय मोक्ष - साधन संबंधी प्रश्न हैं, दूसरा वह जहाँ चर्चा का विषय मोक्ष - स्वरूप संबंधी प्रश्न हैं, और तीसरा वह जहाँ चर्चा का विषय वस्तु जगत् के चरम स्वरूप संबंधी प्रश्न हैं । आकार की दृष्टि से इन भागों में सब से बड़ा है तीसरा, उससे छोटा दूसरा और सबसे छोटा पहला । पहले भाग को शेष दो से पृथक् करना अपेक्षाकृत सरल है और हम कह सकते हैं कि इस भाग में समावेश पाती हैं । - (१) पहले स्तबक की १ - २९ कारिकाएँ, (२) दूसरे स्तबक की १-५१ कारिकाएँ, (३) नवें स्तबक की सभी २७ कारिकाएँ, (४) ग्यारहवें स्तबक की ३०-४८ कारिकाएँ । Jain Education International लेकिन शेष दो भागों को एक-दूसरे से पृथक् करना इतना सरल नहीं — यद्यपि हम कह सकते हैं कि दूसरे भाग का स्पष्टतम उदाहरण हैं पहले स्तबक की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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