Book Title: Saraswati Bar maso Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 60 वैशाख वारु दि[व] स चारु भारु भुतल अभिनवि ते कुंलां कुपल नवा पुस्कल सुकल डालुं पलवी । सहकार धाषे सो महोर चाषे आंखे पिकश्वर जति, इण मास० ॥ ५ ॥ अनुसंधान-२५ तपे तडका वाय फरका अरकादिक श्चव (?) पअसमे तिण दिन सुका गौ वसुका जेठ फुरका निगमे । कठ धाम आकुल थाए व्याकुल सुकुल कुल नर ने सती, इणमास० ||६|| करे घोर विकटा असाढ उमटा घटारी छडीयु नभे गडडाट ग (गा) जे वाअ व (वा) जे षवे वीजलीभुं अभे । जलधार छुटी भर्यां कुटी तुटी पाजा सरवती, इण मास० ॥७॥ ऊर्द्ध तरुवर नीलकंठधर मधुर स्वर मुख उचरे दादुर रहके मेह बके हलके श्रावण जल झरे । पीउ पीउ करतो बपेय लवतो छतो जलधर वर्षती, इण मास० ||८|| भाद्रव भाल्यो रंग ढाल्यो अभ्र माल्यो नवनवे पचरंग प्रगटे ऐहसुं घटे वटे वादल जुजवे । खलहले खाला नदिनाला ढले ढाला दद्धीवती, इण मास० ॥ ९ ॥ आसुह सर्षा हुवा वर्षा गमी ईर्षा दुख टले नवरंग नारि कज्जल सारी नाहवारी आणा वले । हिलिमिले रंगे नाह संगे बिहु उछंगे विलसती, इण मास० ॥ १०॥ कात्तिअ कोली घऊंअ पोली घीए झबोली सहु जिमें रस कलस थला हुवा बहुला भला भोजनसुं रमे । ते भले भावन अतिहि आवन संग साजन सोभती, इण मास० ॥ ११॥ मागिशिर मासे महुल वासे नारी पासे नाहलो जिसो कमल कौले भमर भोले घोले रस ले आकलो । तिम क्रीआ कली रसे रलीयुं अंगे ढलीयुं व्रहेलती, इण मास० ॥ १२॥ गिर हिम ढाले वह्न बाले शीतकाले पोशमे घिरे घिरे सिगड़ी जमे खीचड़ी उलो उरडी नो गमे । तव पहिरि दोटि त्रीआ छोटी दे कसोटी पतिवती, इण मास० ||१३|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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