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वैशाख वारु दि[व] स चारु भारु भुतल अभिनवि ते कुंलां कुपल नवा पुस्कल सुकल डालुं पलवी । सहकार धाषे सो महोर चाषे आंखे पिकश्वर जति, इण मास० ॥ ५ ॥
अनुसंधान-२५
तपे तडका वाय फरका अरकादिक श्चव (?) पअसमे
तिण दिन सुका गौ वसुका जेठ फुरका निगमे ।
कठ धाम आकुल थाए व्याकुल सुकुल कुल नर ने सती, इणमास० ||६||
करे घोर विकटा असाढ उमटा घटारी छडीयु नभे
गडडाट ग (गा) जे वाअ व (वा) जे षवे वीजलीभुं अभे ।
जलधार छुटी भर्यां कुटी तुटी पाजा सरवती, इण मास० ॥७॥
ऊर्द्ध तरुवर नीलकंठधर मधुर स्वर मुख उचरे
दादुर रहके मेह बके हलके श्रावण जल झरे ।
पीउ पीउ करतो बपेय लवतो छतो जलधर वर्षती, इण मास० ||८||
भाद्रव भाल्यो रंग ढाल्यो अभ्र माल्यो नवनवे
पचरंग प्रगटे ऐहसुं घटे वटे वादल जुजवे ।
खलहले खाला नदिनाला ढले ढाला दद्धीवती, इण मास० ॥ ९ ॥
आसुह सर्षा हुवा वर्षा गमी ईर्षा दुख टले
नवरंग नारि कज्जल सारी नाहवारी आणा वले ।
हिलिमिले रंगे नाह संगे बिहु उछंगे विलसती, इण मास० ॥ १०॥
कात्तिअ कोली घऊंअ पोली घीए झबोली सहु जिमें
रस कलस थला हुवा बहुला भला भोजनसुं रमे ।
ते भले भावन अतिहि आवन संग साजन सोभती, इण मास० ॥ ११॥
मागिशिर मासे महुल वासे नारी पासे नाहलो
जिसो कमल कौले भमर भोले घोले रस ले आकलो ।
तिम क्रीआ कली रसे रलीयुं अंगे ढलीयुं व्रहेलती, इण मास० ॥ १२॥
गिर हिम ढाले वह्न बाले शीतकाले पोशमे
घिरे घिरे सिगड़ी जमे खीचड़ी उलो उरडी नो गमे ।
तव पहिरि दोटि त्रीआ छोटी दे कसोटी पतिवती, इण मास० ||१३||
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