Book Title: Saraswati Bar maso
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनि भुधररचित सरस्वती-बार मासो ॥ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि चारणी लढणमां, मिश्र मारवाडी भाषामां, १९ या २० मा शतकमां मुनि भूधर नामे कोई जैन परंपराना साधुए रचेल आ रचनानी विशिष्टता एकज के तेनो विषय स्थूलभद्र-कोशा, नेमराजुल, कृष्णराधा वगेरे न होतां 'सरस्वती देवी' छे. अलबत्त, विद्यानी देवी सरस्वतीने नायिका बनाव्या छतां, तेना स्वरूप, स्वभाव के जीवन अने सामर्थ्य वगेरे विषे कोई ज वात के वातावरण आ रचनामां प्राप्त थतुं नथी, जे अनपेक्षित लागे छे. मात्र प्रथमना त्रण अने छेल्लु-१६मुं पद्य-एमां देवी प्रत्ये प्रार्थनानुं वलण वर्ताय छे. बाकी तो चीलाचालु, सामान्य, भौतिकताभर्यु वर्णन जोवा मळे छे. मित्र मुनि धुरन्धर विजयजीए वढवाण-भण्डारमा छूटक पानांरूपे प्राप्त आ कृतिनी जेरोक्स करावेली, तेना आधारे आ सम्पादन करवामां आव्युं छे. अथ श्री सरस्वतीनो बारमासो छंद लषीतं । दुधक : १ नमो देवाधिदेवं, तास प्रसादे श्रुत समरेवं श्रुतसांमण ते जगत कहेवं, ते सरस्वतीने नीत्य प्रणमेवं ॥१॥ नित्य प्रणम्या पुरेजि(ज)ननि आसं अस्खलित आपे बुद्धि प्रकासं । सरस्वतीने करो निवासं सेवक छंद करे बारमासं ॥२॥ बारमास बालिक परि बोले, भावि भक्ति नवि जाण्युं तोले । षान्ति करी माता राखो खोले, तो करुणाये भक्ति कमलदल खोले ॥३॥ छंद्द : वैताल ॥ तो कोले दिनकर अवनि उपर मास चैतर अतीतपे झरे वह्नि परजल तरवर नीर सरवरनो खपे । लुह झाल झडपे मीन कलपे छपे उड़े नीरवती इण मास माता करो साता सुबुधदाता सरस्वती ॥४॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 वैशाख वारु दि[व] स चारु भारु भुतल अभिनवि ते कुंलां कुपल नवा पुस्कल सुकल डालुं पलवी । सहकार धाषे सो महोर चाषे आंखे पिकश्वर जति, इण मास० ॥ ५ ॥ अनुसंधान-२५ तपे तडका वाय फरका अरकादिक श्चव (?) पअसमे तिण दिन सुका गौ वसुका जेठ फुरका निगमे । कठ धाम आकुल थाए व्याकुल सुकुल कुल नर ने सती, इणमास० ||६|| करे घोर विकटा असाढ उमटा घटारी छडीयु नभे गडडाट ग (गा) जे वाअ व (वा) जे षवे वीजलीभुं अभे । जलधार छुटी भर्यां कुटी तुटी पाजा सरवती, इण मास० ॥७॥ ऊर्द्ध तरुवर नीलकंठधर मधुर स्वर मुख उचरे दादुर रहके मेह बके हलके श्रावण जल झरे । पीउ पीउ करतो बपेय लवतो छतो जलधर वर्षती, इण मास० ||८|| भाद्रव भाल्यो रंग ढाल्यो अभ्र माल्यो नवनवे पचरंग प्रगटे ऐहसुं घटे वटे वादल जुजवे । खलहले खाला नदिनाला ढले ढाला दद्धीवती, इण मास० ॥ ९ ॥ आसुह सर्षा हुवा वर्षा गमी ईर्षा दुख टले नवरंग नारि कज्जल सारी नाहवारी आणा वले । हिलिमिले रंगे नाह संगे बिहु उछंगे विलसती, इण मास० ॥ १०॥ कात्तिअ कोली घऊंअ पोली घीए झबोली सहु जिमें रस कलस थला हुवा बहुला भला भोजनसुं रमे । ते भले भावन अतिहि आवन संग साजन सोभती, इण मास० ॥ ११॥ मागिशिर मासे महुल वासे नारी पासे नाहलो जिसो कमल कौले भमर भोले घोले रस ले आकलो । तिम क्रीआ कली रसे रलीयुं अंगे ढलीयुं व्रहेलती, इण मास० ॥ १२॥ गिर हिम ढाले वह्न बाले शीतकाले पोशमे घिरे घिरे सिगड़ी जमे खीचड़ी उलो उरडी नो गमे । तव पहिरि दोटि त्रीआ छोटी दे कसोटी पतिवती, इण मास० ||१३|| Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ September-2003 माह मास आधे कंबल कांधे जोग साधे जोगीआ जे ग्रहवासि निर्द्धनासि प्रेहवासि उठिआ ! धन धन करतां देस फिरता प्रवहण चडता भगवति, इण मास० // 14 // फागुण फुले रंग धुले बहु अमुले कस कसी मृगमद्द अर्गे प्रेमवर्गे नाहशंगे रसमसी / इम रंग राति जोवन जाति मदि माती ऋतिपति, इण मास० // 15 / / कलसः कवित / सदा सुबुध सरसत वत्त (?) देजो सेवकने सदा सुबुध सरसत सुमति समपो मुझने / सदा सुबुध सरसत छठ सोपो छात्तरने सदा सुबुध सरसत सत्त श्री माताजी सरने / सदा लहु मान सनमान जस द्यो विसे विसवा कविपणो / श्रीजसराज गुरु शिष भणे मुनि भुधर सुमति गणो. / / 16 / / इति श्री सरस्वतीजीना बारमासो छंद स्तोतर संपूर्ण //