Book Title: Saptadhatu aur Adhunik Vigyan Author(s): Ranjankumar Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 4
________________ । योगशास्त्र में कहा गया है कि वसाधातु का निर्माण मांस धातु से होता है। १४ आधुनिक विज्ञान जगत में वसाधातु के संबंध में जैनों की यह अवधारणा मान्य नहीं है। वसाधातु का निर्माण तैलीय पदार्थों से होता है मांस धातु से नहीं। जीवों के शरीर में जो वसा तत्व पाया जाता है उसे वैज्ञानिक फैट सेल्स (fat cells) या एडिपोज टिथ्यू (adipose tissue) कहते हैं। जीव के शरीर में विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में जब यह जमा हो जाता है तब इसे फैट सेल्स कहा जाता है तथा फैट सेल्स के समूह को ही एडिपोज टिश्यू कहा जाता है। १५ पुरुषों एवं महिलाओं दोनों के शरीर मे वसा धातु पाया जाता है। लेकिन महिलाओं में यह पुरुषों की अपेक्षा अधिक मात्रा में पाया जाता है। महिलाओं एवं पुरुषों में वसाधातु के इस सामान्य वितरण का कारण उन दोनों की शारीरिक रचना की विभिन्नता एवं कार्य की प्रकृति है। महिलाओं के शरीर में दुग्ध ग्रंथियाँ पाई जाती है। १५. फिर इसका शरीर कोमल होता है इन सबका कारण वसाधातु ही है। दुग्ध ग्रंथियों में वसा धातु अधिक मात्रा में पाया जाता है। महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक परिश्रम कम करना पड़ता है, शारीरिक परिश्रम कम करने से वसा तत्व कम जलता है इस कारण भी महिलाओं के शरीर में वसाधातु की अधिक मात्रा पाई जाती है। वसा धातु शरीर को गर्मी प्रदान करता है। शारीरिक परिश्रम करने से तथा श्वसन प्रक्रिया द्वारा जो आक्सीजन ग्रहण किया जाता है जब यह वसा धातु से मिलता है तब यह जलने लगता है। ज्वलन की इस प्रक्रिया में अत्यधिक मात्रा में ताप उत्पन्न होता है और यह ताप शरीर को गर्मी प्रदान करता है। शरीर के कुछ अंगों यथा, हथेली, तलवे, नितम्बों आदि पर अधिक मात्रा में जमा रहता है। इन स्थानों पर यह उन अंगों में पाए जाने वाली शिराओं की रक्षा करता है। शरीर के इन अंगों पर शरीर के भार के कारण अधिक दबाव पड़ता है। इस दबाव के कारण हो सकता है कि इन अंगों में पाई जाने वाली वाहिकरें फट जाती और जीव की मृत्यु का कारण बन सकती है। लेकिन यहाँ पर जमा वसा तत्व इन दबावों को स्वयं वहन कर लेता है और वाहिकाएँ सुरक्षित रह जाती है। इस तरह के वसा धातु दबाव रक्षक Soakabsorbor) का काम करता है और जीवों के प्राण की रक्षा भी करता है। कभी-कभी वसा धातु प्राणियों के पेट, कूल्हे, जोड़ो आदि स्थानों पर अधिक मात्रा में जमा हो जाता है इस कारण वह प्राणी काफी स्थूल हो जाता है और अपना कार्य सामान्य ढंग से नहीं कर पाता है। अत: इस परिस्थिति में वसा धातु प्राणी के लिए रक्षक न होकर भक्षक की भूमिका का कार्य करता है अस्थि धातु - जीव का शरीर कोमल और कठोर दोनों ही प्रकार की वस्तुओं समिकर बना है। सामान्य रूप से कोमल भाग मांस-पेशी से बनता है जबकि कठोर भाग का निर्माण एक विशेष प्रकार के तत्व से होता है जिसे अस्थि या हड्डी कहा जाता है। जीव के शरीर का ढाँचा इन्हीं अस्थियों से बना होता है । इन अस्थियों के ऊपर मांस-पेशी चर्म आदि लगे रहते हैं। जिनके कारण प्राणी को एक निश्चित आकार मिलने के साथ साथ एक विशेष प्रकार का व्यक्तित्व भी मिलता है। शरीर को निश्चित आकार देने, मांस-पेशियों आदि को सम्यक् रूप से ढलाव प्रदान करने के कारण अस्थियां हड्डी को शरीर का आधार भी माना जाता है। योगशास्त्र के अनुसार अस्थि मेद या चर्वी से उत्पन्न होने वाली कीकस धातु हैं।१७ कीकस का अर्थ कठोर होता है और अस्थि की प्रकृति कठोर होती ही है। संस्कृत हिन्दी कोश में कीकस का अर्थ (२१६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7