Book Title: Saptadhatu aur Adhunik Vigyan Author(s): Ranjankumar Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 3
________________ प्रकार स्थित होता है कि वह आकर्षक लगता है। इसी के कारण जीव को एक विशिष्ट व्यक्तित्व मिलता है। जैन परम्परा में मांस धातु के लिये मात्र मांस शब्द का ही प्रयोग किया जाता है, लेकिन वैज्ञानिक इस मांस पेशी इन दो शब्दों से जानते हैं। इस संबंध में उनका कहना है कि शरीर में स्थित मांस का पिंड एक अकेले मांस से मिलकर नहीं बना है बल्कि उस पिंड को बनाने में मांस के कई टुकड़े लगे हैं। मांस के दो टुकड़े परस्पर एक तंतु से जुड़े रहते है जिन्हें पेशी कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि मांस पिंड मांस और पेशी से मिलकर बने हुए है संभवत: यही कारण है कि वैज्ञानिक मांस धातु के लिए मांस पेशी शब्द का प्रयोग करते है। प्राय: मांस पेशियों गहरे लाल रंग की होती है। संभवत: इसी कारण जैनों ने इसे रक्त से उत्पन्न मान लिया है, क्योंकि रक्त का रंग भी लाल होता है। इस संबंध में योगशास्त्र में लिखित इस संदर्भ को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। इस ग्रंथ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि रुधिर से जो धातु विशेष उत्पन्न होता है वह मांसधातु है। १° परंतु वैज्ञानिक ऐसा नही मानते है। मांस गहरे लाल रंग का क्यों दिखाई देता है इस संबंध में डॉ. टी.एन.वर्मा का कहना है कि मांस में विभिन्न प्रकार की रक्त वाहिकाएँ पाई जाती है, जिनमें सदैव रक्त भरा रहता है और यही कारण है कि मांस लाल रंग का दिखाई देता है। मांस क्या है इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए डॉ.वजीफदार लिखते है कि यह विभिन्न प्रकार के रंगों से बना एक स्थूल पिंड है जो रक्तवाहिकाओं, स्नायु तंत्रिकाओं तथा लिम्फों से युक्त रहता है। १२ जीव के शरीर में पाई जाने वाली मांस पेशियों विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने में उसे सहायता प्रदान करती है। कार्य करने की दृष्टि से मांस-पेशियों दो प्रकार की होती है। १३ १. अनैच्छिक और २. ऐच्छिक। जिन मांस पेशियों को हम अपनी इच्छा के अनुरूप कार्य करने को प्रेरित नहीं कर सकते है वे अनैच्छिक मांस-पेशियाँ है। हृदय, आंतादि की मांस-पेशियाँ हमारी इच्छा के अनुरूप कार्य नहीं करती है। जब आंतों में भोजन पहुंचता है या जब इसे भोजन की आवश्यकता होती है यह कार्य करना प्रारंभ कर देता है। हृदय लगातार धड़कता रहता है। हम चाहकर भी इसका धड़कना बंद नहीं कर सकते है। इन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है। जिन मांसपेशियों को हम अपनी इच्छानुसार कार्य करने को प्रेरित कर सकते है वे ऐच्छिक कहलाती है जितनी भी मांसपेशियाँ अस्थियों पर लगी रहती और जिनसे गति होती है सब ऐच्छिक है। हाथ-पाँव मुखादि की मांसपेशियाँ ऐच्छिक है। जैनों ने मांसधातु की उत्पत्ति रक्त से होना माना है इस संबंध में वैज्ञानिकों का उत्तर नकारात्मक है। वे मांस धातु की उत्पत्ति रस धातु से होना मानते है। क्योंकि उनका कहना है कि मांसपेशियों अच्छे आहार लेने से बनती है न कि रक्त धातु से। आहार अच्छा हो या बुरा इन सबका पाचन होना है और आमाशय में इसका रस बनता है जिससे रक्त मांसादि सभी अवयव बनते है। (४) मेद धातु- जीव के शरीर में पायी जाने वाली वसा धातु का स्थान चौथा है। सामान्यतया इसका रंग हल्का पीला या घी के जैसा होता है। लेकिन कुछ जीवों में असामान्य अवस्था में इसका रंग भूरा भी हो जाता है। मेद या वसा धातु जीवों शरीर में त्वचा के नीचे पाया जाता है। यह शरीर को कोमल, चिकना बनाए रखने में मदद करने के साथ साथ शरीर के कुछ अंगों की रक्षा भी करता है। कभी-कभी यह शरीर के कुछ भागों में अधिक मात्रा में जमा हो जाता है और जीव की प्राण रक्षा की जगह प्राणलेवा भी हो जाता है। (२१५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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