Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 13
________________ [१२]. मिराजकर को मेरे चिकित्साकार्य को उत्तम रूप में सम्पन्न करने के लिए विशिष्टरूप से प्रेरित किया। इन सभी महानुभावों का मैं और मेरा परिवार सदा ही ऋणी रहेगा । ४ - प्रार्ष गुरुकुल एटा के संस्थापक श्री माननीय स्वामी ब्रह्मानन्द जी दण्डी, और प्राचार्य श्री पं० ज्योतिःस्वरूप जी का भी मैं अत्यन्त प्रभारी हूं, जिन्होंने स्वयं तथा अपने परिचित व्यक्तियों को प्रेरित करके चिकित्सार्थ लगभग ४०० रु० की विशिष्ट सहायता की । ५ - गुरुतुल्य माननीय श्री पं० भगवद्दत्त जी और सम्मान्य वैद्य श्री पं० रामगोपाल जी शास्त्री का तो बाल्यकाल से ही मेरे प्रति अतुल वात्सल्य रहा है ! आप दोनों महानुभाव समय-समय पर अस्प ताल में आकर मेरी देखभाल करते रहे। इन महानुभावों के लिए मैं सदा ही नतमस्तक रहा हूं, और रहूंगा । ६ - इनके अतिरिक्त श्री प्रो० देवप्रकाश जी पातञ्जल तथा देहली के अन्य सभी सम्मान्य प्रार्य बन्धुनों और मित्रों का मी कृतज्ञ हूं, जिन्होंने इस काल में किसी भी प्रकार से प्रत्यक्ष अथवा परोक्षरूप मुझे सहयोग दिया । ७ - इसी प्रसंग में तीर्थराम अस्पताल, राजपुरा रोड, दिल्ली की सभी परिचारिका बहनों और भाइयों का धन्यवाद करना भी अपना कर्त्तव्य समझता हूं, जिन्होंने दो मास तक मेरी सब प्रकार से सेवा की। श्री पूज्य श्रद्धास्पद गुरुवर्य पं० ब्रह्मदत्त जी जिज्ञासु जिनकी मातृ-पितृतुल्य और गुरुरूप छत्र-छाया में बाल्यकाल से आज तक रहा हूं और रहूंगा, के प्रति न कृतज्ञताप्रकाशन ही कर सकता हूं, और न धन्यवाद ही दे सकता हूं, केवल मौंनरूप से श्रद्धा के पत्र - पुष्प ही अर्पित कर सकता हूं । भारतीय प्राचीन संस्कृति, साहित्य और इतिहास के सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री डा० बहादुरचन्द्र जी छाबड़ा एम. ए., एम. ओ. एल., पी. एच. डी., एफ. ए. एस., संयुक्त प्रधान निर्देशक भारतीय पुरातत्त्व विभाग, नई दिल्ली । गत चार वर्षों से निरन्तर २५ रु० मासिक की

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