Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

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Page 25
________________ [२४] परमेश्वर ४५०, काल ४५१, निरुक्त वार्तिक के उद्धरण में निरुक्त का शुद्ध अर्थ ४५१, स्वामी दयानन्द की सूझ ४५२; ७. भरत मिश्र ४५२; ८. स्फोटसिद्धिन्यायविचारकर्त्ता ४५४, ६-१३. स्फोटविषयक ग्रन्थकार ४५५; १४. वैयाकरणभूषण - रचयिता ४५५, भूषणसार के व्याख्याता — हरिवल्लभ ४५६, हरिभट्ट ४५७, मन्नुदेव ४५७, भैरवमिश्र ४५७, रुद्रनाथ ४५८, कृष्णमिश्र ४५८ । १५. नागेशभट्ट ४५८, मञ्जूषा के दो पाठ ४५८, टीकाकार - दुर्बलाचार्य ४५ε, वैद्यनाथ ४५६; १६. ब्रह्मदेव ४५६; जगदीश तर्कालङ्कार ४५६, व्याख्याकार - कृष्णकान्त तथा रामभद्र ४६० । ३० – लक्ष्यप्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि ४६१ काव्यशास्त्र शब्द का अर्थ ४६१, लक्ष्य - प्रधान काव्यों को रचना का प्रयोजन ४६२; १. पाणिनि ४६४; काव्य का नाम ४६४, पाश्चात्य विद्वानों की कल्पना ४६४, उनकी कल्पना का मिथ्यात्व ४६४, पाणिनि के काल में लौकिक छन्दों का सद्भाव ४६६, चित्रकाव्यों की सत्ता ४६७, अष्टाध्यायी के प्रमाण चित्रकाव्यों में ४६७, भारतीय ग्रन्थकारों द्वारा पाणिनि काव्य के निर्देश ४६६, जाम्बवतीविजय का परिमाण ४७१, जाम्बवतीविजय को • उद्धृत करनेवाले २९ ग्रन्थों के नाम ४७१; २. व्याडि ४७३; ३. वररुचि कात्यायन ४७४; वाररुच काव्य का नाम ४७४; ४. पतञ्जलि ४७५; ५. महाभाष्य में उद्धृत कतिपय वचन ४७६; ६. भट्ट भूम ४७७ ; काल ४७८, ग्रन्थ नाम का कारण ४७६, काव्य परिचय ४७९, भट्टि और रावणार्जुनीय में अन्तर ४८०, टीकाकार बासुदेव ४८१; ७. भट्टिकाव्यकार ४८२, भट्टिकार का नाम ४८२, काल ४८५; भट्टि और भामह ४८५; टीकाकार - जटीश्वर - जयदेव - जयमङ्गल ४८७, मल्लिनाथ ४८७, जयमङ्गल ४८८, अज्ञातनाम ४८८, रामचन्द्र शर्मा ४८६, विद्याविनोद ४८६, कन्दर्प शर्मा ४८६, पुण्डरीकाक्ष-विद्यासागर ४६०, हरिहर ४६०, भरतसेन ४९० ; ८. हलायुध ४६१; ६. हेमचन्द्राचार्य ४६१; १०. नारायण ४६२; ११. वासुदेव कवि ४९३, कीथ की भूल ४६३, १२. नारेरी वासुदेव ४६४; १३. नारायण ४६४; उपसंहार ४६५ । संशोधन परिवर्त्तन परिवर्धन तृतीय भाग में

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