Book Title: Samyaktva Mul Bar Vratni Tip
Author(s): Udyotsagar Gani
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 14
________________ हवे निश्चयथी गुरुतत्व कहे. निश्चय गुरुतत्व ते शुद्धात्म विज्ञान पूर्वक जे. जे हेयोपादेय उपयोगयुक्त परिहार प्रवृत्तिज्ञान तेने निश्चे गुरुतत्व कहीए. हवे त्रीजा धर्मतत्वमा प्रथम व्यवहार धर्म कहे. श्रीअरिहंत देवाधिदेव तीर्थकर परमेश्वर समवसरणमां बेसी करीने बार पर्पदानी वचमां श्रीगणधर पदधारीने त्रीपदी दानपू र्वक द्वादशांगीनी रचना करी, त्यां यथार्थ अर्थना कर्ता श्रीअरि हंतजी अने ते अर्थानुयायी सूत्रना कर्ता श्रीगणधर तेने आगम कहिए ते आगममांप्रकाश्या जे नावसकल जीवोने हितकारी दुर्ग ति पडतां जीवने राखे तेने धर्म कहिए ते धर्म स्वरूपना बे नेद ने एक शुद्ध व्यवहार धर्म, बीजो शुद्ध निश्चय धर्म, त्यां प्रथम व्यवहार धर्म ते श्रीजिनागामोक्त शुद्ध दया स्वरूप विज्ञान पूर्वक जे धर्म प्रवृत्तिनु करवं तेने कहिए बैए. - अहिंयां वली दयानु स्वरूप लखीए बैए. दयाना आठ प्रकार . अव्यदया, नावदया, स्वदया, परदया, स्वरूपदया, अनुवंधदया, व्यवहारदया तथा निश्चयदया. हवे अ नुक्रमे ए आठे प्रकारनी दयानुं संदेप वर्णन करीये ठीये. - प्रथम अव्य दया एटले जयण पूर्वक प्रवृत्तिए करी जे जीवर दा करवी ते जैनमार्गिनो कुलधर्म. एने अव्यदया कहिए. वीजी नाव दया एटले वीजा जीवने गुण प्राप्तिनी बुद्धे तथा मुर्गतिनो पतनोझारण अंतर अनुकंपावुद्धि सहित उपदेशादिक करवो तेने नाव दया कहिए. त्रीजी खदया एटले आपणो आत्मा अनादि कालनो मिथ्या त्व अशुद्ध उपयोगी अशुद्ध श्रझान पूर्वक अशुरू प्रवतिए क रीने कपायादिक नाव शस्त्रयी प्रतिसमये ज्ञानादिक गुणघात रूप नाव प्राण हणाय; एवं श्री जिनवचनना उपकारे जाणी करीने

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