Book Title: Samvayang Sutra Ek Parichay Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 4
________________ | समवायांग सूत्र - एक परिचय. 15] ग्यारह गणधर मूल नक्षत्र के ग्यारह तारे, प्रैवयक तथा नारकों व देवों की ग्यारह पल्योपम और ग्यारह सागरोपम की स्थिति का वर्णन है तथा ग्यारह भव करके मोक्ष प्राप्त करने वाले भवसिद्धिक जीवो क उल्लेख भी इसमें है। बारहवाँ समवाय बारहवें समवाय में भिक्षु की बारह प्रतिमाएँ, बारह प्रकार के संभोग (समान समाचारी वाले श्रभागों के साथ मिलकर खान-पान, वस्त्र-पात्र, आदान-प्रदान, दीक्षा-पर्याय के अनुसार विनय-वैयावृत्य करना 'संभोग' कहलाता है।) कृतिकम (खमासमणो) के बारह आवर्तन, विजया राजधानी की बारह लाख योजन की लम्बाई-चौड़ाई बतलायी गयी है। मर्यादा पुरुषोनम श्री रामचन्द्र जी की उग्र बारह सौ वर्ष, जघन्य दिन रात्रि का कालमान बारह मुहूर्त, सर्वार्थ सिद्ध महाविमान की चूलिका से बारह योजन ऊपर सिद्धशिला, सिद्धशिला के बारह नाम, नारको देवों की बारह पल्योपम, बारह सागरोपम, की स्थिति का कथन करके बारह भव ग्रहण करके मुक्ति प्राप्त करने वाले भवसिद्धिक जीवों का उल्लेख किया गया है। तेरहवाँ समवाय तेरहवें समवाय में क्रिया-स्थान के तेरह भेद, ईशान कल्प के तेरह विमानपाथड़े, बारहवें पूर्व में तेरह नामक वस्तु का अधिकार, गर्भज, तिथंच पंचेन्द्रिय में तेरह योग, सूर्यमण्डल एक योजन के इकसठ भागों में से तेरह भाग कम विस्तार वाला, नारकी व देवों में तेरह पल्योपम, तेरह सागरोपम की स्थिति का निरूपण होने के साथ ही तेरह भव ग्रहण करके मोक्ष पाने वालों का भी कथन किया गया है। चौदहवाँ समवाय चौदहवे समवाय में बौदह भुतग्राम (जीवों के भेद), चौदह पूर्व, भगवान महावीर के चौदह हजार साधु, चौदह जीव स्थान (गुणस्थान), चक्रवर्ती के चौदह रल, चौदह महानदियाँ, नारक देवों को मौदह पल्योपम तथा चौदह सागरोपम की स्थिति के साथ चौदह भव ग्रहण करके मोक्ष पाने वाले जीवों का कथन किया गया पन्द्रहवाँ समवाय पन्द्रहवें समवाय में पन्द्रह परम अधार्मिक वृत्ति वाले देव, नमिनाथ जी की पन्द्रह धनुष की ऊँचाई, राहु के दो प्रकार (पर्व राहु और ध्रुवराहु), चन्द्र के साथ पन्द्रह मुहूत तक छह नक्षत्रों का रहना, चैत्र और आसोज माह में पन्द्रह-पन्द्रह मुहूर्त के दिन व रात होना, विद्यानुवाद पूर्व के पन्द्रह अर्थाधिकार, मानव में पन्द्रह प्रकार के योग, (प्रयोग) तथा नारक देवों को पन्द्रह पल्योपम व पन्द्रह सागरोपम की स्थिति का वर्णन है। इसमें पन्द्रह भव करके मोक्ष पाने वाले भवसिद्धिक जीवों का कथन भी किया गया है। सोलहवाँ समवाय सोलहवें समवाय में सूत्रकृतांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन, अनन्नानुबन्धी आदि सोलह कषाय, मेरु पर्वत के सोलह नाम, भगवान पार्श्वनाथ के सोलह हजार श्रमण, आत्मप्रवाट पूर्व के सोलह अधिकार, चारचंबा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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