Book Title: Samvayang Sutra Ek Parichay
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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________________ समवायांग सूत्र - एक परिचय ० श्री धर्मचन्द जैन समवायांग सूत्र एक से लेकर कोटि संख्या तक के तथ्यों का समवाय रूप में संकलन है। इसे स्थानांग सूत्र का पूरक आगम कहा जा सकता है: स्थानांग और समवायांग का ज्ञाता ही आचार्य, उपाध्याय जैसे पदों को ग्रहण कर सकता है। समवायांग सूत्र में संख्याओं के माध्यम से विविश्व प्रकार के तथ्यों की जानकारी होती है, यथा १. तीर्थंकर महावीर, पार्श्वनाथ अरिष्टनेमी, नमिनाथ, मुनिसुव्रत, मल्लिनाथ, अरनाथ, कुन्थुनाथ, शान्तिनाथ वासुपूज्य, श्रेयांसनाथ, शीतलनाथ, सुविधिनाथ, सुपार्श्वनाथ, ऋषभदेव आदि के संबंध में विविध जानकारियाँ, यथा- उनकी अवगाहना, गण, गणधर अवधिज्ञानी, मन पर्यवज्ञानी आदि । २. चक्रवर्ती वासुदेव, बलदेव, विमान, पर्वत आदि की जानकारी ! ३. द्वादशाङ्ग की जानकारी। ४. देवों और नारकों तथा उनके आवासों की जानकारी। ५. कर्मसिद्धान्त संबंधी जानकारी, यथा विभिन्न कर्म-प्रकृतियों की संख्या एवं उनके नाम, बन्ध हेतु । ६. धर्म एवं चारित्र संबंधी जानकारी, यथा- दशविध धर्म, संयम, परीषहजय ब्रह्मचर्य आदि। ७. जीव, अजीव, आहार, श्वासोच्छ्वास, कालचक्र, ज्योतिष, ज्ञान, लोक, पुण्य-पाप, आस्रव संवर, निर्जरा मोक्ष, कषाय, समुद्घात, मदस्थान आदि के संबंध में जानकारी । लेखक ने समवायानुसार विषयवस्तु से परिचित कराया है। - सम्पादक श्रमण भगवान महावीर की अनुपम आदेय वाणी का संकलन सर्वप्रथम उनके प्रधान शिष्य गणधरों ने बारह अंगों के रूप में किया। उनमें चतुर्थ अग समवायांग सूत्र के नाम से जाना जाता है। समवायांग सूत्र जैन सिद्धान्त का कोष ग्रन्थ है । सामान्य जनों को जैन धर्म से संबंधित विषयों का इससे बोध प्राप्त होता है। इस सूत्र की प्रतिपादन शैली अनूठी है। इसमें प्रतिनियत संख्या वाले पदार्थों का एक से लेकर सौ स्थान तक का विवेचन किया गया है। साथ ही द्वादशांग गणिपिटक एवं विविध विषयों का परिचय भी प्राप्त होता है । आचार्य अभयदेव के अनुसार- प्रस्तुत आगम में जीव, अजीव आदि पदार्थों का परिच्छेद या समावेश है। अतः इस आगम का नाम 'समवाय' या 'समवाओ' है। आचार्य देववाचक ने समवायांग की विषय वस्तु इस प्रकार से कही है१. जीव, अजीव, लोक, अलोक एवं स्व समय पर समय का समावेश । २. एक से लेकर सौ तक की संख्या का विकास। ३. द्वादशांग गणिपिटक का परिचय । नन्दीसूत्र में समवायांग सूत्र के परिचय में १,४४,००० पद और संख्यात अक्षर बतलाये हैं। वर्तमान में यह सूत्र १६६७ श्लोक परिमाण है। इसमें क्रम से पृथ्वी, आकाश, पाताल, तीनों लोकों के जीव आदि समस्त तत्त्वों का द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव की दृष्टि से एक से लेकर कोटानुकोटि संख्या तक परिचय दिया गया है! इसमें आध्यात्मिक तत्त्वों, तीर्थकर, गणधर चक्रवर्ती और वासुदेव से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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