Book Title: Sambodhi 2014 Vol 37
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 227
________________ Vol. XXXVII, 2014 काश्मीर शिवाद्वयवाद में प्रमाण चिन्तन : पुस्तक की समीक्षा 219 शब्द के स्थान पर अनुभव, युक्ति और आगम का प्रयोग किया गया है । लेखक ने रेखांकित किया है कि अभिनवगुप्त न्याय दर्शन को मार्गदर्शक मानते हैं (पृ.११३) । ९. प्रत्येक दर्शन सम्प्रदाय अपनी तत्त्वमीमांसा के अनुरूप अपनी प्रमाणमीमांसा को गढ़ता है और काश्मीरीय शैव दर्शन भी इसका अपवाद नहीं है । १०. काश्मीर शिवाद्वयवाद का यह गम्भीर और विस्तृत प्रस्तुतीकरण न केवल इस शास्त्र के अध्येता-अनुसन्धाताओं के लिए अपितु अन्य सम्प्रदायों से तुलनात्मक विवेचन के लिए भी अभिनव आयामों का उद्घाटन अवश्य करेगा । ११. प्रमाणमीमांसा पर लिखे गए ग्रन्थ में किसी भी उक्ति-युक्ति के लिए सन्दर्भ या प्रमाण-शून्य होने का अवसर कैसे हो सकता है ! ग्रन्थकार ने भी ऐसा कोई अवसर नहीं छोडा है । निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि काश्मीर शैव दर्शन पर लेखक के गम्भीर, दीर्घ और व्यापक स्वाध्याय का, ज्ञान-निष्ठा व साधना का निदर्शन यह ग्रन्थ है, जो अपने आप में प्रमाण-स्वरूप है। एतदर्थ लेखक और प्रकाशक दोनों अभिनन्दनीय हैं ।

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