Book Title: Sambodhi 2014 Vol 37
Author(s): J B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 225
________________ काश्मीर शिवाद्वयवाद में प्रमाण चिन्तन : पुस्तक की समीक्षा समालोचना : सूर्यप्रकाश व्यास (लेखक-प्रो.नवजीवन रस्तोगी, प्रकाशक-लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद, प्रथम संस्करण, २०१३) काश्मीर शैव दर्शन के मौलिक ग्रन्थों के लेखन और सिद्धांतो के युक्तियुक्त स्थापन में जो योगदान आचार्य उत्पल और उनके प्रशिष्य आचार्य अभिनवगुप्त का है वही स्थान वर्तमान के इस शास्त्र के अध्ययन-अनुसंधान को आगे बढ़ाने और प्रामाणिक ग्रन्थों के लेखन में डो. कान्तिचन्द्र पाण्डेय और उनके प्रखर शिष्य प्रो. नवजीवन रस्तोगी का है। अर्थात् यदि डो.पाण्डेय इस शास्त्र में अनुसन्धान-लेखन के उत्पलाचार्य हैं तो प्रो. रस्तोगी अभिनवगुप्त । प्रो. रस्तोगी ने अपने अध्ययन-अनुसन्धान का एकमेव लक्ष्य इस शास्त्र को निर्धारित कर अनेक गम्भीर और प्रामाणिक ग्रन्थ- रत्नों से इसके अनुसन्धानात्मक साहित्य की श्रीवृद्धि की है और उसी कड़ी में अभिनव कृति 'काश्मीर शिवाद्वयवाद में प्रमाण-चिन्तन' एक अद्वितीय अध्याय है। लेखक ने कतिपय योग्य समीक्षकों का स्मरण किया है जिनकी टिप्पणियाँ ग्रन्थ के प्रकाशन के पूर्व सुलभ न हो सकी । किन्तु विश्वास है, ग्रन्थ-प्रकाशन के बाद अब अवश्य प्राप्त हुई होगी। फिर भी न जाने क्यों किस क्रम में मेरे जैसे काश्मीर शैव दर्शन के साधारण अनुरागी को इस पर कुछ कहने का आदेश दे दिया गया। इसे न मैं प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करने के योग्य स्वयं को मानता हूँ और न ही इसकी अवज्ञा का दुस्साहस कर सकता हूँ। अतः ग्रन्थ का आद्योपान्त स्वाध्याय करने और कुछ दिन ऊहापोह में रहने के बाद (इसीलिए विलम्ब भी हुआ) कुछ टिप्पणियाँ उद्भूत हुई जो संक्षेप में प्रस्तुत १. यह ग्रन्थ सामान्य पाठकों के लिए न होकर दर्शन शास्त्र और विशेषरूप से प्रमाण-विद्या के गम्भीर विशेषज्ञों के लिए है। २. लेखक ने विशेष प्रकार की उदात्त भाषा-शैली को अपने प्रस्तुतीकरण का माध्यम बनाया है जो ग्रन्थ को शास्त्रीय स्तर प्रदान करती है। ३. ग्रन्थ की प्रस्तावना यह कथन समुचित व सर्वथा समर्थन योग्य है कि अन्य दर्शनों की भांति

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