Book Title: Samayik ka Swarup va Uski Samyak Paripalna
Author(s): Kanhiyalal Dak
Publisher: Z_Sajjanshreeji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012028.pdf

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________________ सामायिक का स्वरूप व उसकी सम्यक् परिपालना - पं० कन्हैयालाल दक ( जैनधर्म दर्शन के प्रसिद्ध विद्वान, लेखक, अध्यापक) सामायिक शब्द जैन धर्म का एक विशेष प्रकार का पारिभाषिक शब्द है, जिसका सीधा व संक्षिप्त अर्थ है, समभाव की प्राप्ति होना । अथवा ऐसी एक विशेष प्रकार की आत्मिक साधना, जिससे साधक को समभाव की प्राप्ति हो । लेकिन इतना मात्र ही सामायिक का अर्थ नहीं है, वास्तव में सामायिक एक विशेष प्रकार की अध्यात्म-साधना है, जिससे मानव जीवन के चरम लक्ष्य 'मोक्ष' की प्राप्ति भी सम्भव है | जैनधर्म ग्रन्थों में सामायिक को श्रावक तथा साधु की एक 'पडिमा ' के रूप में स्वीकार किया गया है, और इसके स्वरूप तथा महत्व पर सविशेष प्रकाश डाला गया है, जिसका परिज्ञान होना प्रत्येक सामायिक प्रेमी के लिए अत्यन्त आवश्यक है । यह सर्वविदित है कि जैन धर्म एक आचार-प्रधान धर्म है । केवल सिद्धान्तों का ज्ञान हो जाना, दर्शन-शास्त्र का प्रकाण्ड पण्डित हो जाना और शास्त्रों का पारगामी विद्वान हो जाना ही जैन धर्म में पर्याप्त नहीं माना गया है, अपितु ज्ञानपक्ष के साथ में क्रिया-पक्ष को भी उतना ही प्रधान माना गया है, क्योंकि जहाँ किया है, वहाँ श्रद्धा है और श्रद्धा के साथ में आचार व सम्यक्दर्शन का घनिष्ठ सम्बन्ध है । कहीं-कहीं तो ‘ज्ञानं भारः क्रियां विना' कहकर क्रियाशून्य ज्ञान को भार तक कह दिया गया है । आचार या क्रिया की प्रधानता बतलाते हुए नीतिशास्त्र में भी विद्वान की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि 'यस्तु क्रियावान् पुरुषः स विद्वान्' अर्थात् ज्ञान होने के साथ-साथ जो व्यक्ति तदनुकूल आचरण करता है वही विद्वान है | आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने अपने प्रामाणिक ग्रन्थ 'विशेषावश्यक भाष्य' में कहा गया है कि "ना किरिया हि मोक्खो' अर्थात् ज्ञान-सम्यग्ज्ञान और क्रिया अर्थात् सम्यक्चारित्र के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है । यहाँ सम्यक्ज्ञान में सम्यक्दर्शन का भी समावेश हुआ समझ लेना चाहिए । जैन धर्म के सिद्धान्तानुसार वास्तविक मोक्षमार्ग की भूमिका का प्रारम्भ चतुर्थ गुणस्थान ( अविरत सम्यक दृष्टि ) से होता है । सत्य के प्रति दृढ़निष्ठा या लगन का होना सम्यग्दर्शन है । अनादि कालीन अज्ञान-अन्धकार में पड़ा हुआ मानव जब सत्य- सूर्य के दर्शन कर लेता है, तब वह अपने आपको कृतार्थ सा अनुभव करता है । लेकिन मानव-जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करने के लिए सत्य Jain Education International ( ६५ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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