Book Title: Salibhadra Dhanna Charit na Karta tatha ene Anushange Ketluk Author(s): Jayant Kothari Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ हरखि न दीधउ हालिरउ जी, बहूअ न पाडी पाइ, तो वांझणि हुइ छुटिस्यइ जी, हुं किणि गानि गिणाइ रे ३ सुतविरहइ दुःख मातनउ जी, कहि न सकइ कविराज, जाणइ पुत्रवियोगिणी जी... (ढाळ २३मी तपास करतां जिनराजसूरिनी अन्य कृतिओना उद्गारो पण 'सालिभद्रधन्ना-चरित'मां मळी आववा संभव छे. कोयडो कर्तृत्वनिर्देशक पंक्तिओना अर्थघटननो, छेवटे, रहे छे. जिनराजे चरित का एम नहीं, पण जिनराजना वचनने अनुसरीने जिनसिंहसूरिशिष्य मतिसारे चरित कयुं छे एवी वाक्यरचना एमां देखाय छे. अहीं ए हकीकत तरफ ध्यान दोरवू जोईए के मध्यकाळमां 'मतिसार' ए शब्द 'मति अनुसार, बुद्धि अनुसार' एवा अर्थमां वारंवार वपरायेलो मळे छे. जिनराजसूरिए ज पोतानी बीजी कृति 'गजसुकुमाल महामुनि चोपई'मां ए शब्द ए अर्थमां वापर्यो ज छे : श्री जिणसिंधसूरि गुणधारा, खरतरगच्छ उदारा बे. श्री जिनराज तासु परभावइ, इणि विधि मुनिगुण गावइ बे. ए संबंध सदा सांभलिस्यइ, तासु मनोरथ फलस्यइ बे. आठमइ अंग तणइ अणुसारइ, जोडि रची मतिसारइ बे. (३०, १३-१६) तो पछी, 'श्री जिनराज-वचन अनुसाइ'नुं अर्थधटन पण, उपरनां प्रमाणोने लक्षमा लई कृति जिनराजसूरिनी छे एम मानीने करवू जोईए. एमां जिनराज एटले जिनेश्वरदेव एवो अर्थ प्राथमिक रीते लई शकाय - 'जिनेश्वरदेवना [13] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6