Book Title: Salibhadra Dhanna Charit na Karta tatha ene Anushange Ketluk
Author(s): Jayant Kothari
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सालिभद्र-धन्ना-चरित'ना कर्ता तथा एने अनुषंगे केटलुक जयंत कोठारी _ 'सालिभद्र-धन्ना-चरित ना कर्ता । अर्नेस्ट बेन्डरे 'सालिभद्र-धन्ना-चरित' संपादित करी प्रगट करेल छे (अमेरिकन ओरिएन्टल सोसायटी, न्यू हेवन, कनेक्टिकट, १९९२) अने एना कर्ता मतिसार होवा- एमणे जणाव्युं छे. आ हकीकत यथार्थ जणाती नथी. . कृतिमां कर्तृत्वनिर्देशक पंक्तिओ आ प्रमाणे छे : श्री जिनसिंहसूरि-सीस मतिसारइ, भवियणनइ उपगारइ जी, श्री जिनराजवचन अनुसारइ, चरित काउ सुविचारइ जी. (२९.९) अहीं 'मतिसार'ने कर्तानाम लेखवानुं अने 'जिनराज'ने 'जिनदेव'ना अर्थमां लेवानुं सहज छे. पण 'जैन गूर्जर कविओ' मां आ कृति प्रथम मतिसारने नामे मूकी, पछीथी जिनराजसूरिनी गणी छे (जुओ बीजी आवृत्ति, भा.३, पृ.१००-१४) अने अगरचंद नाहटाए एने 'जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि' (प्रका. सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टिट्यूट, बीकानेर, वि.सं.२०१०)मां प्रगट करी छे. आ हकीकतो लक्षमा लई बेन्डरे, ओछामां ओछु, कर्तृत्वना प्रश्ननी चर्चा करवी जोईती हती, जे थई नथी ए जरा आश्चर्यजनक लागे छे. एमने 'जैन गूर्जर कविओ'नी बन्ने आवृत्तिओनी खबर छे पण एमणे संदर्भ आप्यो छे पहेली आवृत्तिना पहेला भागनो ज, ज्यां कृति मतिसारने नामे मुकायेली छे. पाछळथी थयेली सुधारणा एमणे ध्यानमां नथी लीधी अने बीजी आवृत्तिनो तो लाभ ज लीधो नथी. एमणे कर्ता- नाम केटलीक हस्तप्रतोमां मतिसागर मळे छे एनी नोंध लीधी छे, पण कर्तृत्वना प्रश्नने छेड्यो नथी. __'जैन गूर्जर कविओ'मां पहेलां मतिसारने मूकवामां आवेली कृति पाछळ्थी जिनसिंहसूरिशिष्य जिनराजसूरिने नामे फेरखवामां आवी तेमां बे हस्तप्रतोनी पुष्पिकाओ कारणभूत छे. ए बे पुष्पिकाओ आ प्रमाणे छ : (७२) बोहित्थ वंशीयावतंसीयमान... जंगम युगप्रधान श्री जिनराजसूरिभिविरचयांचक्रे साह धर्मसी धारलदेवी पुत्र रत्न साह गेहाख्या भ्रातुरभ्यर्थनया... सं.१६८८ वर्षे पंडित ज्ञानमूर्ति लिखित फागण सुदि १४ [10] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिने शुभं भवतु श्री जालोर मध्ये. डाह्याभाई वकील, सुरतनी प्रत. (बी. आ., भा.२, पृ.१०६) (८५) बोहित्थवंसीयावतंसीयमान ... युगप्रधान श्री जिनराजसूरिभिः रचयांचके साहाणहाख्य स्वभ्रातुरभ्यर्थनया... वि. सं. १८१८ वर्षे शाके प्रवर्तमाने ज्येष्ट सुदि ६ शनौ वासरे वणोदनगर मध्ये... सकलप्रवरपंडित श्री पुन्यविजय शि. रत्नविजयगणि शि. लालविजयेन. गारियाधार भंडारनी प्रत. (बी. आ., भा.२, पृ.१०७) - आ पुष्पिकाओमां कृति जिनराजसूरिए रची होवानुं स्पष्ट रीते कहेवामां आव्युं छे. तेमांये पहेली क्रमांक ७२नी पुष्पिकावाळी प्रत तो सं. १६८८मां एटले कृतिरचना पछी दश वर्षे ज अने जिनराजसूरिना जीवनकाळमां (एमनो जन्म सं. १६४७, दीक्षा सं. १६५६, आचार्यपद सं. १६७४, स्व. सं. १६९९) लखायेली छे. एणे आपेली माहितीने आधारभूत न मानवा माटे कशुं कारण नथी. बीजी क्रमांक ८५नी प्रत, अलबत्त, आ प्रत परथी ज तैयार थई लागे छे. कृति जिनराजसूरिनी रचना होवानुं कृतिमांना केटलाक उल्लेखो पण बतावे छे. कृतिमां आ नोंधना आरंभे उद्धृत करेली कर्ताना नामवाळी पंक्तिओ सिवाय दश स्थाने 'जिनराज' शब्द आवेलो छे. बेन्डरे तो बधां स्थान परत्वे जिन भगवान महावीरनो अर्थ ज शब्दकोशमां नोंध्यो छे. पण खरेखर एम नथी. थोडेक स्थाने 'जिनराज' शब्द जरूर भगवान महावीरने निर्देशे छे (केमके आ कथामां से एक पात्र तरीके आवे छे), परंतु थोडेक स्थाने मात्र जिनेश्वरदेव एवो अर्थ छे ने बेएक स्थाने तो ए कर्तानामनो निर्देशक शब्द होय एवं मानवुं पडे तेवुं छे. जुओ: हिव जिण परि धन्नउ आवइ, ते पिण जिनराज सुणावइ. (१७.२४) शालिभद्रवृत्तांतमांथी धन्नाना वृत्तांत तरफ वळतां आ पंक्ति आवे छे. देखीती रीते ज एनो अर्थ छे : हवे जे रीते धन्नो ( कथामां) दाखल थाय छे ते पण जिनराज ( एटले कवि) संभळावे छे. बेन्डरे "Now Dhanna enters (the story), according to the version of the Jinaraja.” [11] Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एवो अनुवाद आप्यो छे, पण 'the Jinaraja' द्वारा एमने शुं अभिप्रेत हशे ते कही शकातुं नथी. जो भगवान महावीर अभिप्रेत होय तो ते योग्य नथी केमके अहीं ए कंई कथा कहेनार नथी. सुतविरहइ दुख मातनउ जी, कहि न सकइ कविराज, जाणइ पुत्रवियोगिणी जी. इम जंपइ जिनराज रे. (२३.१५) अहीं पण अर्थ स्पष्ट छे : माताने पुत्रना विरहे जे दुःख थाय छे ते कोई कवि न कही शके, ए तो पुत्रवियोगिनी माता ज जाणे एम जिनराज (कवि) कहे छे. अहीं पण बेन्डर "50 says the Jinaraja' एम अनुवाद करे छे एमां अस्पष्टता रहे छे. भगवान महावीरनो निर्देश तो संभवित नथी ज. केटलेक स्थाने देखीतो 'जिनदेव' नो अर्थ होय तोपण 'जिनराज' शब्दमां कविए श्लेषथी पोतानुं नाम गूंथ्युं होय ए संभवित छे. जिनराजसूरिना एक 'शालिभद्र गीत' (जिनराजसूरि - कृति - कुसुमांजलि, पृ. ६८-७० ) ना केटलाक उद्गारो 'सालिभद्र - धन्ना - चरित' मां ए ज शब्द रूपे मळे छे ए हकीकत पण 'सालिभद्र - धन्ना - चरित' जिनराजसूरिनी रचना होवानी वातने समर्थित करे छे. जुओ : शालिभद्र गीत : जाणइ पुत्रविजोगणी जी, जे दुःख कवि न कहाइ. छाती लागी फाटिवा जी, नयणे नीरप्रवाह. हरख न दीघउ हालरउ जी, ते वांझणि होई छूटिस्यइ जी, $ वहूअ न पाडी पाइ, हुं किम गान गिणाइ. साल ती परि सालस्यइ जी, ए मुझ अहीठाण. सालिभद्र - धन्ना-चरित्र : छाती लागी फाटवा जी. नयणे नीरप्रवाह रे. [12] ९ १३ १४ १ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरखि न दीधउ हालिरउ जी, बहूअ न पाडी पाइ, तो वांझणि हुइ छुटिस्यइ जी, हुं किणि गानि गिणाइ रे ३ सुतविरहइ दुःख मातनउ जी, कहि न सकइ कविराज, जाणइ पुत्रवियोगिणी जी... (ढाळ २३मी तपास करतां जिनराजसूरिनी अन्य कृतिओना उद्गारो पण 'सालिभद्रधन्ना-चरित'मां मळी आववा संभव छे. कोयडो कर्तृत्वनिर्देशक पंक्तिओना अर्थघटननो, छेवटे, रहे छे. जिनराजे चरित का एम नहीं, पण जिनराजना वचनने अनुसरीने जिनसिंहसूरिशिष्य मतिसारे चरित कयुं छे एवी वाक्यरचना एमां देखाय छे. अहीं ए हकीकत तरफ ध्यान दोरवू जोईए के मध्यकाळमां 'मतिसार' ए शब्द 'मति अनुसार, बुद्धि अनुसार' एवा अर्थमां वारंवार वपरायेलो मळे छे. जिनराजसूरिए ज पोतानी बीजी कृति 'गजसुकुमाल महामुनि चोपई'मां ए शब्द ए अर्थमां वापर्यो ज छे : श्री जिणसिंधसूरि गुणधारा, खरतरगच्छ उदारा बे. श्री जिनराज तासु परभावइ, इणि विधि मुनिगुण गावइ बे. ए संबंध सदा सांभलिस्यइ, तासु मनोरथ फलस्यइ बे. आठमइ अंग तणइ अणुसारइ, जोडि रची मतिसारइ बे. (३०, १३-१६) तो पछी, 'श्री जिनराज-वचन अनुसाइ'नुं अर्थधटन पण, उपरनां प्रमाणोने लक्षमा लई कृति जिनराजसूरिनी छे एम मानीने करवू जोईए. एमां जिनराज एटले जिनेश्वरदेव एवो अर्थ प्राथमिक रीते लई शकाय - 'जिनेश्वरदेवना [13] Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वचनने अनुसरीने धर्मबोधनी आ कथा कहेवामां आवी छे' - परंतु एमां श्लेषथी कविए पोतानुं नाम गूंथ्युं छे एम मानवू जोईए. मतिसार 'मतिसार' शब्द 'मति अनुसार, बुद्धि अनुसार ना अर्थमां वपरातो होवानो एक दाखलो उपर आप्यो छे. 'जैन गूर्जर कविओ'नां पानां फेरवतां बीजा घणा दाखला मळी आवे तेम छे. एक वधु दाखलो नोंधीए : मि माहारी मतिसार कीधो, सेवी पंडितपाइ जी. (ऋषभदासकृत 'समक्तिसार रास', जै.ग.क., बी.आ., ३,४५, 'मतिसार'ने कर्तानाम मानी लेवानी भूल थई गयाना पण बीजा दाखला जडे छे, जेमके, जिनवर्धमाननी 'धन्नाऋषि चोपाई' नीचेनी पंक्तिने कारणे पहेलां मतिसारने नामे मुकायेली : ए संबंध रच्यो मतिसार,स नवम अंग अणुंसारै जी. परंतु एमां आगळनी पंक्तिमा कर्तानाम स्पष्ट छे अने उपरनी पंक्ति एना अनुसंधानमां ज वांचवानी छ : तस शिष्य जिनवधमान जगीस, आसो सुदि छठि दिवसैजी, संवत सत्तर दाहोत्तर वरसै, खंभाइत मन हरसैंजी, ए संबंध रच्यो मतिसारै... पछीथी, आ कारणे, कृतिने जिनवर्धमाननी गणवानी थई. (जुओ जैन गूर्जर कविओ, बी.आ., ४,१६९-७०) ___'जैन गूर्जर कविओ'मां मतिसारने नामे बे कृतिओ मूकी ए कर्तानाम खरं होवा विशे संशय दर्शाववामां आव्यो छे. (बी.आ., ३, ३३६,३७) ने एमांनी एक कृति 'चंदराजा चोपाई' करमचंदने नामे मळे छे जेमा 'मतिसारइ मइ कीउ प्रबंध' एवी पंक्ति आवे छे. ('बे कर जोडी कहे करमचंद' एवी पंक्ति पण छे ज.) श्लोकसंख्या ६५६ ने ६९६ पण मळती ज कहेवाय. बीजी कृति 'गुणधर्म रास'नी आवी चावी मळती नथी, पण एमांये भूल थई होवानी शंका निराधार नथी. [14] Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मतिसारने नामे 'कर्पूरमंजरी' एक जाणीती रचना छे. एमां बीजं कोई नाम मळतुं नथी. परंतु ए अज्ञातनामा कविनी रचना होय अने 'बोलइ कवि पंडित मतिसार'मां 'मतिसार' शब्द 'मति अनुसार'ना अर्थमां होय एवो संभव साव नकारी न शकाय. आवो संभव विचारवानुं कारण ए छे के आवां थोडां शंकास्पद स्थानो सिवाय 'मतिसार' एवं नाम ज क्याय मळ्तुं नथी. सार वस्तुतः मध्यकाळमां 'सार' शब्द 'अनुसार'ना अर्थमां व्यापक रीते प्रयोजायेलो जोवा मळे छे. जेमके, श्री गुरुवयण सुणी बुद्धिसार, सीमंधर जिन गायो. (जै.गू.क., बी. आ., 4, 66) 'बुद्धिसार' एटले बुद्धि अनुसार. सत्तरि कम्मविचारं कहियं रिषि कुंभ सुयसारं. (जै.गू.क., बी.आ., 1, 305) 'सुयसारं' एटले सूत्र अनुसार, शास्त्रानुसार, सारइ: अनुसार 'मनसा-सारइ' / (गुजराती भाषानुं ऐतिहासिक व्याकरण, हरिवल्लभ भायाणी, पृ.२००) 'मनसा-सारई' एटले मनीषा अनुसार, इच्छा मुजब. पाप कीयां तई तिहां घणां, जनकभवनि दिनराति रे, पहिलं दुःख पाम्युं तिणइ, बीबा-सार भाति रे. 26.3 (राजसिंहकृत 'आरामशोभाचरित्र', आरामशोभा रासमाळा, संपा. जयंत कोठारी, पृ.२२३) 'बीबा-सारु भाति' एटले बीबा अनुसार, बीबा प्रमाणे भात पडे छे. घर-सार आपई दाति ए. 96 (विनयसमुद्रकृत 'आरामशोभाचोपाई', एजन, पृ.१२२) अर्थ छे : घर अनुसार, घर प्रमाणे, घरने शोभतो ए करियावर आपे छे. निज घर-सारं मोकलउ. ५.दू.२ (जिनहर्षकृत 'आरामशोभारास', एजन, पृ.२३५) अर्थ छे : पोताना घर अनुसार, घरने शोभतुं (भातुं) मोकलो. [15]