Book Title: Sagarotpatti
Author(s): Suryamal Maharaj
Publisher: Naubatrai Badaliya

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) ताने इसकी बातों को कल्पित समझ कर पूछा कि उसके अकेले पानेका क्या कारण है ? उसने कहा कि कुछ उपद्रव की सम्भावनासे वह ऊंट सवारी द्वारा गुजर से आया है। जनताने इस बातको कल्पित समझ कर उन्हें औष्ट्रिक ( ऊंटसे आया हुया) और उपाधिही से उनके शिष्य भी ओष्ट्रिक कहलाए। तत्पश्चात् श्री जगतचन्द्रने अपने शिष्य और भक्तोंको एकत्रित कर क्रोध पूर्वक सबसे कलह करना शुरू किया। अतएव, इन्हें पुनः तपोष्टिक नायक एक नई पदवी मिली। तप धातु सन्ताप अर्थ में होती है। पुरुष बचनों द्वारा चकि वे मनुष्यों को सताते थे अतएव उनकी शाखा का नाम तपा पड़ा। वाह्य क्रिया प्रदर्शित करने वाले जनताको मुग्ध करनेवाले आडम्बरसे तपस्खी का रूप धारण कर विहार करनेवाले मनुष्यों को तपोटा कहते हैं । अतः इनकी शाखा का नाम तपोंटा भी पड़ा श्रो उच्चिष्टचाण्डालीदेवी की सेवा द्वारा प्राप्त वरों से अहङ्कारो और क्रोधोन्पत्त हो नेके कारण चाण्डालिक भो कहे गये। अज्ञान द्वारा नीच तपस्या करनेसे तथा ऊंट पर सवारी करने के कारण उन क्रोध से लाल नेत्र वालों का भौष्ट्रिक नाम भी पड़ा। कुछ समय बीतने पर उनके शिष्योंने घोषित किया कि तपस्या करने के कारण वे लोग तपा कहे जाते हैं। परन्तु है For Private And Personal Use Only

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