Book Title: Sagarotpatti
Author(s): Suryamal Maharaj
Publisher: Naubatrai Badaliya

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८ ) जी सरिने म्लेच्छ राजका मानमर्दनकर तथा ध्वजा तोरण स्थापित कर सागरीय शाखा को पराजित किया था। इन्होंने यन्न पूर्वक सागरियों को शिक्षित बनाने का प्रयत्न किया है। इनके उपका - रार्थ श्री वादीन्द्र कुम्भचन्द्र सूरिजीके ग्रन्थावलोकन कर कथनकी विवेचना कर उसके संग्रह मूलाधार पर सागरियो' का ग्रन्थावलोकन कर और शुद्ध युक्ति के आधार पर सबको यथार्थ तत्व समझने के लिए मैंने इस पुस्तक को लिखने का प्रयत्न किया है । किप्ती रागद्वषसे नहीं किन्तु सागरी शाखाका यथार्थ तत्व जाननेके लिये ही मैंने इस पुस्तक को लिखनेका प्रयत्न किया है अतएव इसकी त्रुटियो'को पण्डित वर क्षमा करेंगे। "समाप्त" नोट इस पुस्तकके अनुसन्धान करने में अथवा लिखने में जिन २ महाशयों से प्रत्यक्षा--प्रत्यक्ष में सहायता मिली है उनका मैं सर्वदा कृतज्ञ हूं। For Private And Personal Use Only

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