Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 2
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 179
________________ 174 : श्रमण/अप्रैल-जून/1995 आकार - पेपर बैक डिमाई, प्रथम संस्करण - १६६५ पृष्ठ - ३२, मूल्य - २० रुपये मात्र । जैन परम्परा निवृत्तिमार्गी रही है। यही कारण है कि जैन साहित्य में शृंगार रस की अपेक्षा शान्तरस ( वैराग्य ) को ही प्रमुखता प्राप्त है किन्तु शृंगार की उपेक्षा की गयी है, ऐसा भी नहीं है। कविवर सोमप्रभ आचार्य विरचित, ४६ श्लोकों में निबद्ध 'श्रृंगारवैराग्यतरंगिणी' एक ऐसी रचना है जो श्रृंगार एवं वैराग्य दोनों ही रसों का अभूतपूर्व संगम है। शृंगार अपने समग्र अस्तित्व में इस रचना के कतिपय विन्यासों से फूट पड़ता है तो वैराग्य श्रृंगार की निःसारता को प्रकट करता हुआ मोक्ष को ही अपना अभीष्ट मानता है। जैनाचार्यों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने श्रृंगार का पर्यावसान वैराग्य में ही किया है। इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद अभी तक अनुपलब्ध था। मुनि श्री अशोक ने इसके हिन्दी अनुवाद का कार्य सम्पादित कर केवल विद्वद्भोग्या इस रचना को जनसामान्य हेतु सुलभ बनाया। पुस्तक संस्कृत साहित्य के अध्येताओं, वैराग्य प्रेमी मुनिजनों एवं जनसामान्य के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। कृति श्रेष्ठ एवं संग्रहणीय है। पुस्तक - हरिभद्र साहित्य में समाज और संस्कृति लेखिका - डॉ० ( श्रीमती ) कमल जैन पृष्ठ - २२५, आकार – डिमाई पेपर बैक प्रथम संस्करण - १६६४, मूल्य - १००.०० रुपए। जैन साहित्य को आचार्य हरिभद्र (याकिनीसूनु ) का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनका साहित्य विविध एवं विपुल है। प्रस्तुत कृति में लेखिका ने हरिभद्र साहित्य में वर्णित समाज और संस्कृति के विविध आयामों का तलस्पर्शी विवेचन प्रस्तुत किया है। अपने गहन अध्ययन के आधार पर डॉ० जैन ने समाज और संस्कृति के सभी मुख्य बिन्दुओं को न केवल स्पर्श किया है बल्कि उसकी गम्भीर विवेचना की है। ग्रन्थ १२ अध्यायों में वर्गीकृत है जिसमें क्रमशः आचार्य के जीवनवृत्त एवं साहित्य, उनके साहित्यिक अवदान का मूल्यांकन, आचार्य का दार्शनिक अवदान, योग के क्षेत्र में अवदान, श्रावकाचार एवं श्रमणाचार का विस्तृत विवेचन किया गया है। साथ ही हरिभद्र वाङ्मय में वर्णित सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं आर्थिक तथ्यों का भी यथास्थान विवेचन किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक हरिभद्र साहित्य पर शोध कर रहे शोधार्थियों एवं अध्येताओं के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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