Book Title: Sagar Jain Vidya Bharti Part 2
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 178
________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ के नए प्रकाशन : 173 की सुशीलता है कि उन्होंने भगवान महावीर की परम्परागत निर्वाण-स्थली पावापुरी को तिरस्कृत किये बिना पडरौना को उनका निर्वाणस्थल सिद्ध किया है। पडरौना के प्राचीन टीले का आगे पुरातात्त्विक उत्खनन किया जाय तो और महत्वपूर्ण तथ्य सामने आयेंगे और भविष्य में पडरौना को जैन समाज के पूजनीय तीर्थस्थल के रूप में आदर प्राप्त हो सकेगा। यदि श्री खेतानजी और पडरौना का जैन समाज बिहार और बंगाल के श्वेताम्बर और दिगम्बर समाजों के साथ मिलकर भगवान् महावीर के एक या दो मन्दिर खोज सकें तो निश्चय ही पडरौना - पावा एक महत्वपूर्ण जैन तीर्थ के रूप में विकसित हो सकेगा। पुस्तक - शीलदूतम् लेखक - चारित्र सुन्दरगणि हिन्दी अनुवाद - साध्वी प्रमोद कुमारी जी एवं पं० विश्वनाथ पाठक प्रकाशक - पार्श्वनाथ शोधपीठ, ग्रन्थमाला सं० ६६ आकार - पेपरबैक डिमाई, प्रथम संस्करण - १९६४ पृष्ठ - ४२, मूल्य - बीस रुपये मात्र । संस्कृत साहित्य के क्षेत्र में जैनाचार्यों का महत्त्वपूर्ण अवदान है। १३१ श्लोंकों में निबद्ध, जैनाचार्य चारित्र सुन्दरगणि विरचित 'शीलदूतम्' जैन मेघदूत की तरह एक पादपूात्मक दूतकाव्य है। जहाँ जैन मेघदूत में राजुल और नेमि का संवाद वर्णित है, वहीं 'शीलदूतम्' में स्थूलभद्र और वेश्या कोशा का संवाद है। उल्लेखनीय है कि जैनाचार्यों ने श्रृंगार की अपेक्षा वैराग्य को अधिक प्रमुखता दी है। 'शीलदूतम्' भी एक शान्तरसपरक रचना है जिसमें विचारों के दो प्रतिकूल धरातलों पर स्थित स्थूलभद्र और कोशा के वैचारिक संघर्षों में कोशा के प्रणय-निवेदन की निष्पत्ति वैराग्य में होती है और यही इस ग्रंथ का प्रतिपाद्य है। इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद अभी तक अनुपलब्ध था। यह गुरुतर कार्य विद्वद्वय साध्वी प्रमोद कुमारी जी एवं पं० विश्वनाथ पाठक ने किया और केवल विद्वदभोग्या इस रचना को अपनी प्रांजल भाषा में सर्वसाधारण हेतु उपलब्ध कराया। यह पुस्तक संस्कृत साहित्य के अध्येताओं के साथ-साथ जनसामान्य के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। कृति श्रेष्ठ एवं संग्रहणीय है। पुस्तक - शृंगारवैराग्यतरंगिणी लेखक - श्री सोमप्रभ आचार्य हिन्दी अनुवाद - अशोक मुनि, सम्पादक - डॉ० अशोक कुमार सिंह प्रकाशक - पार्श्वनाथ शोधपीठ, ग्र० मा० सं० ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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