Book Title: Sadhna ke Guru Shikhar Par
Author(s): Ramesh Doctor
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 7
________________ 358 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 || युवक-एक- धार्मिक आस्थाभाव रखने वाले सहयात्रियों में श्रमण जीवन एक पवित्र जीवन है। इसमें __ स्वाध्याय का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। ज्ञान के अनुरूप आचरण ही दुःख मुक्ति का मार्ग है। युवक-दो- श्रमण दिन एवं रात्रि को दो-दो कालों में विभाजित कर दिन में स्वाध्याय एवं ध्यान करते हैं। युवक-तीन- रात्रि में भी स्वाध्याय एवं ध्यान कर ज्ञानवान हो उत्कर्ष को पाते हैं, दिन में भिक्षा एवं रात्रि में निद्रा भी दिनचर्या का भाग है। युवक-चार- श्रमण-जीवन जागृति का प्रतीक है। युवती-एक- श्रमणत्व आत्म-शुद्धि और प्रशम सुख-प्राप्ति का पथ है। जो विकारों से रहित होते हैं, वे पूज्य हो जाते हैं। युवती-दो- यह सुख आत्मिक है, लौकिक नहीं। (एक पल का अन्तराल) युवक-एक- श्रमण का लक्ष्य परम अनन्त सुख है। युवती-एक- श्रमण की साधना-अनन्त और वास्तविक सुख प्राप्ति के लिए है। युवती-दो- श्रमण की यात्रा निरापद भी नहीं है। युवक-एक- श्रमण के साधना मार्ग में शूल भी हैं और फूल भी हैं। धर्म की राह चरित्रवान् बनाती है। युवक-दो- सहनशीलता से संवेदनशीलता बढ़ती है। युवक-तीन- धर्म का प्रत्येक चरण जीव के लिए हितकारी होता है। धर्म की राह संस्कारवान बनाती है। युवक-चार- श्रमण दीक्षा की पाठशाला एकान्त एवं दीक्षा का पाठ मौन है। धर्म की राह मुक्ति का माध्यम है। युवती-एक- धर्म आत्मसाक्षी से होता है। युवती-दो- प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा करनी चाहिए। साध्वी-एक- वीतराग वाणी समग्र है। साध्वी-दी- गुरुदेव ने हमें प्रेरित किया और जिनेश्वर वाणी को हम तक पहुँचाया है। हम सब गुरुदेव के __ आभारी हैं। साध्वी-एक- गुरुदेव ने अपने उद्बोधन में बताया-“मानव! आ जाओ। तुम भी मेरी तरह राग-द्वेष पर विजय प्राप्त करके जिन बन जाओ। तुम भी इस मार्ग पर चलोगे, पुरुषार्थ करोगे तो कर्म का आवरण टूटेगा और तुम भी जिन बन जाओगे।" साध्वी-दो- गुरुदेव ने हमें प्रेरित किया पर-निन्दा का त्याग करने के लिए। अपने अन्तर्मन को टटोलने के लिए। जो बीत गया है उसकी चिन्ता न करना। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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