Book Title: Sadhna ke Guru Shikhar Par
Author(s): Ramesh Doctor
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 5
________________ 1356 | जिनवाणी 10 जनवरी 2011 समवेत स्वर- हम सब धर्मावलम्बी प्रतिज्ञा करते हैं कि प्रतिपल साधना मय जीवन बनायेंगे। गुरुदेव के वचनों को आत्मसात् कर दिखायेंगे। मिट सके सभी का इस भव से भ्रमण ऐसा उत्तम आचरण का कीर्तिमान बनायेंगे। (एक पल का अन्तराल) जिन्होंने स्वयं को साधना से सक्षम बनाया, फिर जगत को कल्याण हेतु साधना का पथ बताया। उनकी शिक्षा ज्योति को घर-घर फैलायेंगे। धर्म-साधना की सुरभि से दिग्दिगंत महकायेंगे। (एक पल का अन्तराल) हम श्रमण-जीवन की महत्ता को प्रकाश में लायेंगे। साधना के गुरु शिखर पर विराजमान गुरुदेव की जय! आचार्य श्री की जय! जय! दृश्य तीन नेपथ्य में स्वर धीरे-धीरे उभरता है, तीव्र होता है, सुमधुर स्वर लहरी के साथ स्पष्ट सुनाई देता धन्य-धन्य प्रभुतोहे, वन्दना हमारी है। आचार्य श्री ज्ञानवन्त, गुणवन्त जग हितकारी है। सौम्यता झलकाने वाले ज्ञान-गंगा बहाने वाले जिनके आप्त वचनों पर मुग्ध होते नर नारी हैं। धन्य-धन्य प्रभुतोहे, वन्दना हमारी है॥1॥ आगमों का गहरा ज्ञान संघकी थामे रहे कमान भाव से निष्काम हुए जो, गुरु तपस्वी सेवाव्रत धारी हैं। धन्य-धन्य प्रभु तोहे, वन्दना हमारी है।।2।। (धीरे-धीरे स्वर मंद होता है एवं थम जाता है।) साध्वियों का समवेत स्वर- हम साध्वियां हैं। श्रमण हैं। हम श्रमशील हैं, समभाव की साधक हैं। साध्वी-एक- श्रमण का जीवन संयम और विरक्ति का प्रतीक होता है। श्रमण बाह्य वस्तुओं के स्वामित्व का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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