Book Title: Sadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi Author(s): Kusumpragya Shramani Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 2
________________ आचार्य तुलसी अनेक बार कहा करते थे, 'धर्मगुरु तो आप मुझे कहें या न कहें लेकिन मैं साधक हूं और समाज-सुधारक हूं।' उनकी साधना व्यक्तिगत स्तर तक सीमित नहीं थी। उन्होंने अध्यात्म और साधना को सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठित करने का महनीय कार्य किया। 'साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी' आर्चायजी की साधना और क्षमताओं का जीवंत इतिहास है। इस इतिहास को एकसूत्रता में पिरोना एवं इसकी विशद विवेचना करना बहुत दुस्साहस है। इस दुष्कर कार्य को समणी कुसुमप्रज्ञा ने जिस मनोयोग के साथ किया है, इससे उनकी लेखकीय प्रतिभा एवं क्षमता न केवल उजागर हुई है, बल्कि प्रतिष्ठित भी हुई है। मैं तो यही कहूंगा कि आचार्य तुलसी के दिवंगत होने के बाद उनकी स्मृति को स्थायित्व देने की दृष्टि से इससे अच्छी कोई श्रद्धाञ्जली नहीं होगी। मैं समणी कुसुमप्रज्ञा को कोटिशः धन्यवाद देना चाहूंगा और अपेक्षा करूंगा कि उनका आगामी लेखन भी इसी भांति लोकोपयोगी एवं शाश्वत होगा। -राजेन्द्र अवस्थीPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 372