Book Title: Sadhna Ka Kendrabindu Antarman Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 4
________________ रोकना चाहें, रोक लें। फिर तो यह मन आपके लिए परेशानी की चीज नहीं, बल्कि बड़े आनन्द की चीज होगी। एकाग्रता या पवित्रता : अनेक जिज्ञासु व्यक्ति मन को एकाग्र करने की बात प्रायः मुझसे पूछते हैं। मैं कहा करता हूँ--मन को एकाग्र करना बहुत बड़ी बात नहीं है। आप जिसे अहम् सवाल या मुख्य प्रश्न कहते हैं, वह मन को एकाग्न करने का नहीं, बल्कि मन की पवित्रता का है। सिनेमा देखते है, तो वहाँ मन बड़ा स्थिर हो जाता है। खेल-कूद, गप-शप में समय का पता ही नहीं चलता, उसमें भी मन एकाग्र हो जाता है। फिर मन को एकाग्र करना कोई बड़ी बात हो, ऐसी बात नहीं है। सवाल है, मन को पवित्र कैसे किया जाए? मन यदि पवित्र एवं शुद्ध होता है, तो उसकी चंचलता में भी आनन्द आता है। मन को छानिए : पानी को छानकर पीने की बात जैनधर्मने बड़े जोर से कही है। यों तो 'वस्त्र पूर्त पिवेज्जलम्'१ का सूत्र सर्वत्र मान्य है, पर इसी के साथ 'मनः पूतं समाचरेत्' की बात भी कही गई है। मन को छानने की प्रक्रिया भी भारतीय धर्म में बतलाई गई है। मन को छानने से मतलब है, उसमें से असद्-विचारों का कड़ा-कचरा निकाल कर उसे पवित्र बना लेना, उसे शुद्ध और निर्मल बना लेना। इसके लिए मन को मारने की जरूरत नहीं, साधने की जरूरत है। उसे शत्नु नहीं, मित्र बनाने की जरूरत है। सधा हुआ मन, जब चिन्तन-मनन, निदिध्यासन में जड जाता है, फिर तो वह अपने पाप सहज ही एकाग्र हो जाता है। फिर प्रयत्न करने की जरूरत नहीं पड़ती। केवल इशारा ही काफी है, दिशा-निर्देशन ही बहुत है। उसे पवित्र बना कर किसी भी रास्ते पर दौड़ा दीजिए, आप को प्रानन्द-ही-मानन्द पाएगा, कष्ट का नाम भी नहीं होगा। बिखरे मन की समस्याएँ : बहुत वार सुना करता हूँ, लोग कहते हैं-"मन उखड़ा-उखड़ा-सा हो रहा है, मन कहीं लग नहीं रहा है, किसी बात में रस नहीं आ रहा है"--इसका मतलब क्या है ? कभीकभी मन बेचैन हो जाता है, तो आप लोग इधर-उधर घूमने निकल जाते हैं-चलो, मन को बहलाएँ । मतलब इसका यह हुआ, कि मन कहीं लग नहीं रहा है, इसलिए आप को बेचैनी है, परेशानी है। इधर-उधर घूम कर कैसे भी समय बिताना चाहते हैं। एक सज्जन हैं, जिन्हें कभी-कभी रात को नींद नहीं आती है, तो बड़े परेशान होते हैं, खाट पर पड़े-पड़े करवटें बदलते रहते हैं, कभी बैठते हैं, कभी घूमते हैं, कभी लाइट जलाते है, कभी अंधेरा करते हैं। यह सब परेशानी इसलिए है कि नींद नहीं आती है और नींद इसलिए नहीं आती कि मन अशान्त है, उद्विग्न है। जिस मनको शान्ति नहीं मिलती, वह ऐसे ही करवटें बदलता रहता है, इधर-उधर भटकता फिरता है। परेशान और बेचैन दिखाई देता है। ये सब बिखरे मन की समस्याएँ हैं, मन की गाँठे हैं, जिन्हें खोले बिना, सुलझाए विना चैन नहीं पड़ सकता। काम में रस पैदा कीजिए। प्रश्न यह है, मन की गाँठे कैसे खोलें? मन को नींद कैसे दिलाएँ ? बिखरे हुए मन को शान्ति कैसे मिले ? इसके लिए एक बड़ा सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत है। १. दृष्टिपूतं न्यसेत्पाद, वस्त्रपूतं जलं पिबेत् । सत्यपूतां वदेद्-वाचं, मनःपूतं समाचरेत् ।। -मनुस्मृति, प्र.६, श्लोक ४६ पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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