Book Title: Sadhan Jivan me Trigupti ka Mahattva Author(s): Ratanbai Choradiya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 5
________________ || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी 317 कितने ही पापों से बच सकते हैं। जैसे कपड़े सुखा रहे हैं, झाडू निकाल रहे हैं, लाइट-पंखा आदि चला रहे हैं, खाना बना रहे हैं तो सोचें, यतना से घर कैसे झाड़ते हैं, कपड़े कैसे झटक-झटक कर सुखाते हैं। हमारे जैन साधु कैसे कपड़े सुखाते हैं वे छोटी से छोटी चीज को भी कैसे यतना से परठते हैं। ___ कर्मों के जाल से यदि हमें मुक्त बनना है तो हमारे भावों में निरन्तर विशुद्धि रहे।शुभ भावों से हम अपने को निरन्तर भावित करते रहें। बारह भावनाओं का चिंतन करते रहें। अपने को भावित कैसे करें। जैसे- “मरना सबको एक दिन अपनी-अपनी बार" मुझे भी एक दिन मरना है, रहना नहीं है। यहाँ से निश्चित जाना है फिर मुझे ऐसे कार्य नहीं करना है जिससे मैं दुर्गति का मेहमान बनूं। जब मुझे सब कुछ यहीं छोड़कर जाना है तो फिर मैं वस्तु, व्यक्ति एवं परिस्थिति को लेकर राग-द्वेष के भाव क्यों करूँ। उस पर ममता की मोहर क्यों लगाऊँ? जो आया है वह अवश्य जायेगा। मैं भी जाऊँगा। इस तरह हर क्षण शुभ विचारों के द्वारा हम अपनी आत्मा को भावित करते रहें। मन की शक्ति हमें मिली है तो हम अच्छा सोचें, अच्छा चिंतन करें। वाणी की शक्ति मिली है तो हम मधुर बोलें। काया की शक्ति मिली है तो खूब सेवा व परोपकार के कार्य करें। हमें मन-वचन व काया ये तीन शक्तियाँ मिली हैं। हम इसका सदुपयोग व दुरुपयोग दोनों कर सकते हैं। दुरुपयोग तो हमने आज तक किया ही है। तभी तो अनन्त काल से हम भटक रहे हैं। अब तीनों का सदुपयोग कर सम्यग्दर्शन प्राप्त कर अनन्त संसार को सीमित कर सकते हैं। -चोरडिया भवन, थार हेण्डलूम के सामने, गोल बिल्डिंग रोड़, जालोरी गेट, जोधपुर 342003(राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5