Book Title: Sadhan Jivan me Trigupti ka Mahattva Author(s): Ratanbai Choradiya Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 4
________________ 316 जिनवाणी || 10 जनवरी 2011 ॥ आत्मीयता की भावना रखते हैं तो सब हमारे बन जाते हैं। दो मीठे बोल जीवन की धारा बदल देते हैं। पीढ़ियों के जानी दुश्मन भी मित्र बन जाते हैं। शस्त्र से चीरे हुए हार्ट को टांके लगाकर जोड़ दिया जाता है, लेकिन शब्दों के द्वारा चीरे हुए हार्ट को जोड़ना बड़ा कठिन है। अतः हम वचनों का सदुपयोग करें। प्रश्न- काय गुप्ति से जीव को क्या लाभ होता है? उत्तर- काय गुप्ति में अशुभ कार्य से निवृत्ति की जाती है। काय गुप्ति में शरीर को अशुभ चेष्टाओं या कार्योसे हटाकर शुभ चेष्टाओं व कार्यो में यतनापूर्वक लगाया जाता है। अयतना का अर्थ है उपयोग शून्यता, असावधानी, अविवेक, अजागृति एवं प्रमाद। हम हर कार्य को यतनापूर्वक करके कर्म बंधन से बच सकते हैं। मन एवं वचन दोनों का आधार काया है। चेतना के रहने का स्थान पूरा शरीर है। हमारे रोम-रोम में आत्मा के प्रदेश हैं। शरीर के माध्यम से ही चेतना की प्रतीति होती है। मन-वचन के बिना काया रह सकती है। पर काया के बिना मन-वचन की परिणति नहीं होती। हम इस शरीर का सदुपयोग कर मोक्ष को जा सकते हैं व दुरुपयोग कर नरक-निगोद में भी जा सकते हैं। अतः इस शरीर से जो भी क्रियाएँ करें उन्हें पूर्ण यतना व विवेक से करें। यतना से आस्रव रुकता है। यह शरीर जीवित भगवान का मंदिर है। जिसे यह समझ होगी वह कभी भी गलत कार्य कैसे कर सकता है? हम अपने शरीर के भीतर बैठे उस जीवित परमात्मा को देखें, समझें व उनके दर्शन करें। जो अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख व अनन्त वीर्य से सम्पन्न है। जब कायगुप्ति होती है तो संवर होता है। आस्रव का त्याग हो जाता है तभी हम चेतना में स्थिर होते हैं। काय गुप्ति का मतलब-अशुभ से हमें छूटना है। इस शरीर से जितनी भी प्रवृत्तियाँ हम करते हैं, वे निर्दोष हों। इस तरह की प्रवृत्ति करें, जिससे किसी भी जीव को कष्ट न हो। जयं चरे जयं चिढ़े, जयमासे, जयं सट, जयं भुंजंतो भासंतो, पावकम्मं न बंधइ। यतनापूर्वक चलने, खड़े रहने, बैठने, सोने, खाने व बोलने से पाप कर्मों का बंध नहीं होता है। हमारे कदम मोक्ष मार्ग में अर्थात् ज्ञान-दर्शन चारित्र के मार्ग में आगे बढ़ें। मैं कैसे चल रहा हूँ, क्यों चल रहा हूँ, कहाँ चल रहा हूँ, किस कारण चल रहा हूँ, बिना मतलब के तो नहीं चल रहा हूँ? मैं संसारमार्ग में भौतिक सुखों के पीछे पागल बनकर तो नहीं दौड़ रहा हूँ? इस प्रकार हर कार्य में क्यों, कैसे, किसलिये लगायें, जैसे- मैं क्यों बोल रहा हूँ, क्यों खा रहा हूँ, कहाँ जा रहा हूँ, कैसे चल रहा हूँ, कैसे सो रहा हूँ? प्रत्येक प्रवृत्ति का निरीक्षण कर यतना रखें। हम संसारमार्ग में दौड़ते-दौड़ते परेशान हो जायेंगे तो भी मंजिल कभी नहीं मिलेगी, दूरी कम नहीं होगी, लेकिन मोक्ष मार्ग में थोड़ा भी चलेंगे तो दूरी कम होती जायेगी व मंजिल के नजदीक पहुँचते जायेंगे। ___ काया से कोई भी क्रिया यदि हम यतनापूर्वक करते हैं तो वह संवर है। चाहे सामायिक करते समय सामायिक के बैग को भी अयतना से फेंक देते हैं तो वहाँ भी आस्रव है। दैनिक क्रियाओं में यदि हम यतना रखें तो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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