Book Title: Sadaivvatsakumar Charitram
Author(s): Matisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
Publisher: Ratilal Keshavlal

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Page 12
________________ श्री सदैवव चरित्रम् नित्यं कृतव्ययः स्वैरं मेरुरप्यपचीयते / तेजसीवगतेवित्ते नरों गारसमो भवेत् // 75 // बंधुर्बधुरधीस्तावत्तावद्भार्या मनोनुगा / सर्वः कलकल स्तावद्यावद्दद्रव्यसमागमः // 76 // निर्द्रव्यं च नरंनूनं संत्यजत्यनुजीविनः / मुंचन्ति विहगाः सद्यस्तडागमिव निर्जलम् // 77 // K अद्यश्वोवातवैवायं राज्यभारोवतिष्ठते / तन्निर्वाहक्षम विद्वन् साधारणं गुणं श्रय // 78 // अत्यासक्तिश्चदाने हि द्यूतेऽपि दोष एव च / सर्व च क्रियमाणंहि युक्त्या गुणाय जायते // 79 // - अन्यथानर्थहेतुस्तन्नात्र कार्या विचारणा / निदर्शनं तु पुत्र त्वं शृणु मत्तः सुबोधकृत् // 8 // - तरुदाहोऽतिशीतेन दुर्भिक्षमतिवर्षणात् / अतिद्युतादनौचित्यमति कुत्रापि नेष्यते // 8 // Hएकोरविरतितेजा अतिशूरः केसरी वनवासी / अतिविपुलं खं शून्यमतिगंभिरोंऽबुधिः क्षार // 82 // अतिदानाद्दलिर्बद्धो ह्यतिदण रावणः / अतिरूपाहृता सीता ह्यति सर्वत्र वर्जयेत् // 83 // ॥जिहिं न मुणिजाइदेव-गुरु जिहिं नविकज अकज्ज / तणुसतावणकुगइ पदकुणइ तिणिछयरमिंजा // | रक्षणीयः सदा दक्षैः पुरेऽपि व्यसनी वसन् / पापानांव्यसनंमूलं पापंदुःखततेरिव // 84 // - धर्मस्याव्यसनंमूलं धर्मः सर्वसुखश्रियाम् / व्यसनैः सुखमिच्छन्ति मूढाः शैत्यमिवानले // 85 //

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