Book Title: Sachitra Bhagwan Mahavir Jivan Charitra
Author(s): Purushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 11
________________ आशीर्वाद यह बात सर्वमान्य है कि संसार के प्राचीनतम धर्मों में जैनधर्म का अपना स्थान है। जैनधर्म न तो किसी धर्म का अंग है, न कोई अन्य धर्म जैनधर्म का । जैनधर्म स्वतन्त्र धर्म है । इसके ग्रन्थ, देव, दर्शन, तत्त्व चिन्तन अन्य धर्मों से भिन्न हैं । ये भारतीय धर्म है जिसकी अपनी परम्परा है जिसे हम श्रमण परम्परा कहते हैं। इसका प्राचीन नाम निर्ग्रन्थ भी प्राप्त होता है। जैनधर्म अनादि है । इसका कोई शुरू करने वाला नहीं। तीर्थंकर भी इस धर्म के प्रचारक संस्थापक होते हैं। इस युग में भगवान ऋषभ से प्रभु महावीर तक २४ तीर्थंकर संसार को अहिंसा, अनेकान्त व अपरिग्रह का मार्ग बताते रहे हैं। उनके पवित्र वचनों का संकलन उनके ज्ञानी गणधरों व आचार्यों ने सूत्रों के रूप में किया। इन तीर्थंकरों में अन्तिम तीर्थंकर प्रभु महावीर संसार के युग पुरुषों में अपना सर्वोपरि स्थान रखते हैं। उनके जीवन पर अनेक आचार्यों ने भिन्न-भिन्न भाषाओं में, विभिन्न कालों में अनेकों ग्रन्थों की रचना की है। इस युग में भी अंग्रेजी, उर्दू में प्रभु महावीर का जीवन-चरित्र लिखा गया । हमारी गुरुणी जिनशासन प्रभाविका उपप्रवर्तिनी श्री स्वर्णकान्ता जी प्रेरणा से पंजाबी में जीवन चरित्र लिखा गया। हमारी गुरुणी पंजाबी जैन साहित्य की प्रथम प्रेरिका व लेखिका हैं। उन्हीं के शिष्य श्रावक शिरोमणि, समाज रत्न लेखक रवीन्द्र जैन व पुरुषोत्तम जैन ने यह कार्य सम्पन्न किया । अब हमारी गुरुणी जी म. अस्वस्थ हैं। उनके धर्म प्रचार के कार्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा मेरी बहिन गुरुणी जी की शिष्या, सरल आत्मा महासाध्वी सुधा जी ने उठाया है। पहले इन्हीं की प्रेरणा से गुरुणी जी की दीक्षा स्वर्ण जयन्ती पर अभिनन्दन ग्रन्थ की रचना हुई। अब प्रभु महावीर के २६०० जन्म-कल्याणक पर प्रभु महावीर का सचित्र जीवन-चरित्र उन्हीं साध्वी सुधा जी के दिशा-निर्देशन व प्रेरणा से प्रकाशित हो रहा है। इस हिन्दी भाषा की कृति के लेखन का कार्य भी हमारी गुरुणी के आशीर्वाद से दोनों धर्म-भ्राताओं रवीन्द्र जैन व पुरुषोत्तम जैन के हाथों से सम्पन्न हुआ है। इस कार्य में विद्वानों के साथ-साथ मुनि श्री जयानंद जी के सुझावों के लिए आभारी हैं। मैं इस कार्य की प्रेरिका साध्वी सुधा को अपनी शुभ कामना देती हूँ, जिनेन्द्र प्रभु से प्रार्थना करती हूँ कि वह इसी तरह देव, गुरु व धर्म की सेवा करती रहें । मैं दोनों लेखकों को आशीर्वाद देती हूँ कि वह धर्म - कार्य में हमारी धर्म - यात्रा में सहायक बनें। मैं अपने समस्त साध्वी परिवार की भी आभारी हूँ जिन्होंने इस कार्य में दोनों भाइयों व साध्वी सुधा का हाथ बँटाया है। इस ग्रन्थ का प्रकाशन आगरा के श्रीचन्द सुराना व राजेश सुराना के तत्त्वावधान में हुआ । इनका सहयोग अमूल्य व अविस्मरणीय है। यह हमारे साधुवाद के पात्र हैं। अतः मैं सभी दानी भाई-बहिनों को साधुवाद देती हूँ । लेखक, प्रकाशक व दानी सभी गुरुणी जी के आशीर्वाद के पात्र हैं। पाठकों से प्रार्थना है कि पुस्तक की त्रुटियों की ओर ध्यान न देकर इस ग्रन्थ के उद्देश्य को समझें । तभी लेखकों का श्रम सार्थक होगा। अतः मैं व समस्त साध्वी परिवार यह ग्रन्थ जिनशासन साध्वी रत्न, जैन ज्योति श्री स्वर्णकान्ता के कर-कमलों में सहज भाव से समर्पित करते हैं। प्रभु महावीर का यह जीवन भ्रान्त धारणाओं को समाप्त करो । जैनस्थानक ३१.३.१९९९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only - साध्वी राजकुमारी अम्बाला www.jainelibrary.org

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